भरमौर विधानसभा क्षेत्र को चंबा-कांगड़ा लोकसभा में जोड़ने की मांग

bharmour vidhansabha ko chamba kangra loksabha me jodne ke maang
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हिमाचल प्रदेश के भरमौर विधानसभा क्षेत्र के निवासियों ने हाल ही में एक विशेष मांग उठाई है। वे अपने क्षेत्र को मंडी लोकसभा से अलग कर चंबा-कांगड़ा लोकसभा में सम्मिलित करने की इच्छा रखते हैं। उनकी इस मांग के पीछे का तर्क यह है कि मंडी लोकसभा से उनके क्षेत्र का उचित प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है और भरमौर भोगोलिक तरीके से भी मण्डी के साथ सीधे नहीं जुड़ा है। जिसके कारण भरमौर क्षेत्र की विकास से जुड़ी आवश्यकताएं और समस्याएं अनदेखी की जा रही हैं।

मणिमहेश यात्रा और 84 प्राचीन मंदिर वाले स्थान को राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं

भरमौर, जो कि चंबा जिले का एक अंग है, अपनी धार्मिक महत्वपूर्णता के लिए विख्यात है। मणिमहेश यात्रा और 84 प्राचीन मंदिरों के साथ, यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन के लिए एक केंद्रीय स्थान है। इसके बावजूद, इस क्षेत्र के निवासियों का मानना है कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ावा दिया जा रहा है। इतनी महत्वपूर्ण स्थलों के होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर भरमौर के विकास के मुद्दों को रखा ही नहीं गया है।

मंडी भरमौर से 300 किलोमीटर दूर और चंबा -कांगड़ा से होकर ही जाना पड़ता है

इस मांग को उठाने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि मंडी भरमौर से 300 किलोमीटर दूर है और भाजपा तथा काँग्रेस दोनों पार्टियों के सांसदों ने भरमौर क्षेत्र को अनदेखा किया है। भरमौर से मण्डी सीधे सड़क से नहीं जुड़ा है। भरमौर से मण्डी जाने के लिए लगभग 10 घंटे लगते हैं और भरमौर के लोगों को मण्डी जाने के लिए चंबा और कांगड़ा से होकर ही जाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, भरमौर के लोगों का विचार है कि चंबा-कांगड़ा लोकसभा के सांसद उनकी आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभावी ढंग से उठा सकते हैं। कांगड़ा और चंबा जिले से निकटता और भरमौर के लोगों के कांगड़ा में घर होने के कारण, भरमौर को कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र के साथ जोड़ने की मांग को और भी वाजिब बनाती है। इस परिवर्तन से न केवल भरमौर क्षेत्र के लोगों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व मिलेगा, बल्कि यह क्षेत्र के विकास और विरासत के संरक्षण में भी सहायक होगा।

क्या भरमौर की जनता लोकसभा चुनाव 2024 का बहिष्कार करेगी?

स्थानीय निवासियों और समाजिक संगठनों ने कहा है कि इस मांग को लेकर वे विभिन्न रैलियों और मीटिंग्स का आयोजन करेंगे और लोकसभा चुनाव 2024 का बहिष्कार करने पर भी मंथन करेंगे। उनका कहना है कि यह परिवर्तन भरमौर क्षेत्र के विकास में गति लाएगा और साथ ही सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में मदद करेगा।

भरमौर क्षेत्र की जनता की इस मांग ने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है। यह दर्शाता है कि भौगोलिक और सांस्कृतिक निकटता किस प्रकार लोकसभा क्षेत्रों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सभी पक्षों के बीच बातचीत और संवाद के माध्यम से इस मुद्दे का समाधान निकालने की आवश्यकता है। स्थानीय निवासी, राजनीतिक नेताओं और राज्य सरकार के बीच आपसी सहमति से ही भरमौर विधानसभा क्षेत्र की मांग पर सकारात्मक परिणाम संभव है।

पूरे भारत में लोक प्रशासन और चुनावी प्रतिनिधित्व के तरीकों पर पुनर्विचार करने का एक मौका

भरमौर क्षेत्र की मांग न सिर्फ हिमाचल प्रदेश में, बल्कि पूरे भारत में लोक प्रशासन और चुनावी प्रतिनिधित्व के तरीकों पर पुनर्विचार करने का एक मौका प्रदान करती है। यह भविष्य में अन्य क्षेत्रों की समान मांगों के लिए एक मार्गदर्शिका साबित हो सकती है। इस मांग को समर्थन देने का प्रमुख उद्देश्य भरमौर क्षेत्र के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करना और उनके विकास की गति को बढ़ावा देना है।

अंत में, यह जरूरी है कि सरकार और संबंधित प्राधिकरण इस क्षेत्र की अनूठी चुनौतियों और आवश्यकताओं को समझें और भरमौर क्षेत्र के लोगों के हित में प्रभावी कदम उठाएं। इस प्रकार, न केवल भरमौर क्षेत्र का समग्र विकास सुनिश्चित होगा, बल्कि इसकी समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का भी संरक्षण होगा।

2026 से शुरू होगा परिसीमन (Delimitation 2026)

भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और विविधता को संजोए रखते हुए, 2026 में लोकसभा सीटों को लेकर होने वाली परिसीमन प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण कदम साबित होने जा रही है। परिसीमन, जिसका अर्थ है निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारित करने की प्रक्रिया, भारतीय लोकतंत्र की संरचना में समय-समय पर होने वाला एक निर्णायक बदलाव है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य न केवल जनसांख्यिकी संतुलन को ध्यान में रखकर निर्वाचन क्षेत्रों को पुनः आकार देना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि प्रत्येक नागरिक की आवाज समान रूप से सुनी जाए।

परिसीमन आयोग के गठन की प्रक्रिया भारत में पहले भी विभिन्न अवसरों पर हो चुकी है, जिनमें 1952, 1963, 1973, और 2002 शामिल हैं। इस बार की परिसीमन प्रक्रिया के तहत, सरकार ने एक व्यापक फ्रेमवर्क विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है जो कि मौजूदा प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को बरकरार रखते हुए, जनसांख्यिकी संतुलन को अधिक कुशलता से संभालने का प्रयास करेगा।

समानुपातिक प्रतिनिधित्व की अवधारणा इस बार की परिसीमन प्रक्रिया का एक केंद्रीय बिंदु है। इसके अंतर्गत, सीटों की संख्या में वृद्धि न केवल जनसंख्या के आधार पर की जाएगी, बल्कि जनसंख्या नियंत्रण को सफलतापूर्वक लागू करने वाले राज्यों को भी उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाएगा। इस प्रकार, प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में सांसद की संख्या आबादी के अनुपात के आधार पर निर्धारित होगी, जिससे समानता और संतुलन की भावना को मजबूती मिलेगी।