हिमाचल प्रदेश राजनीतिक संकट (Himachal Pradesh political crisis) का एक नया अध्याय बुधवार को उस समय लिखा गया, जब कांग्रेस सरकार ने राज्यसभा चुनाव में एक अप्रत्याशित हार के बाद सदन में अपनी बहुमत की स्थिति पर उत्पन्न हुई अनिश्चितता के मध्य, विपक्षी भाजपा के 15 विधायकों को रणनीतिक रूप से निष्कासित कर दिया। इस निष्कासन में विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर भी शामिल थे, जिससे सत्तारूढ़ पार्टी को एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यबल प्राप्त हुआ।
इस निर्णायक कदम ने कांग्रेस बनाम भाजपा हिमाचल (Congress vs BJP Himachal) के खेल में एक नया अध्याय जोड़ा। भाजपा विधायक निष्कासन (BJP MLAs expulsion) कांग्रेस के लिए एक विशाल जीत के रूप में सामने आया, जिससे वे बिना किसी विरोध के राज्य बजट (state budget) को पारित कर सके। इस घटनाक्रम ने हिमाचल प्रदेश राज्यसभा चुनाव (Himachal Pradesh Rajya Sabha election) के परिणामों के बाद उत्पन्न हुए राजनीतिक उतार-चढ़ाव (political turmoil) को और बढ़ा दिया।
सुखु सरकार बजट पास (Sukhu government budget pass) की इस जीत ने न केवल उनकी रणनीतिक सूझबूझ को प्रदर्शित किया बल्कि आगामी आम चुनाव तक सत्ता में उनकी पकड़ को मजबूत किया। इस निष्कासन ने भाजपा के लिए 68 सदस्यीय सदन में सफलतापूर्वक चुनौती पेश करना कठिन बना दिया, जिससे हिमाचल में कांग्रेस की रणनीति (Congress strategy in Himachal) को एक नया आयाम मिला।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सुखु ने इसे सरकार को गिराने की कथित साजिश के खिलाफ एक निर्णायक जीत के रूप में माना। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि सरकार अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी, जिससे राजनीतिक हलकों में चल रही इस्तीफे की अफवाहों को खारिज किया गया।
इस घटनाक्रम के प्रतिक्रिया में, कांग्रेस ने तीन वरिष्ठ नेताओं – कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, और पूर्व हरियाणा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, भूपिंदर हुड्डा और भूपेश बघेल – को संकट को संबोधित करने के लिए भेजा। हुड्डा और शिवकुमार ने शिमला में पार्टी के विधायकों के साथ एक-एक करके बैठकें की, विधायकों की भावनाओं और चिंताओं को समझने का प्रयास किया। हालांकि, संकट को ट्रिगर करने वाले छह बागी विधायक शहर से अनुपस्थित थे, जिससे समाधान तक पहुँचने के प्रयासों में जटिलता आई।