हिमाचल रेल सुविधाओं का अभाव, प्रगति के लिए चुनौती

हिमाचल प्रदेश, जिसकी प्राकृतिक सुंदरता और पहाड़ी इलाकों के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है, अपने विकास के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की मांग कर रहा है। विशेष रूप से, रेलवे नेटवर्क का विस्तार ऐसा क्षेत्र है जहां निवेश की गंभीर आवश्यकता है। राज्य के मध्य भागों में रेलवे लाइनों की कमी के चलते विकास की गति प्रभावित हो रही है, जिससे यहां के निवासियों को भारत के अन्य हिस्सों से जुड़ने में कठिनाई होती है।

हालांकि, वर्ष 2023-24 के बजट में हिमाचल प्रदेश के लिए कुछ महत्वपूर्ण राशि मंजूर की गई है, जिसमें भानुपल्ली-बिलासपुर-बेरी रेललाइन के लिए 1,000 करोड़ रुपये, चंडीगढ़-बद्दी रेललाइन के लिए 450 करोड़ रुपये और नंगल-तलवाड़ा रेललाइन के लिए 452 करोड़ रुपये शामिल हैं। ये परियोजनाएं राज्य के कुछ भागों में यात्रा और माल ढुलाई की सुविधा में सुधार करेंगी, लेकिन ये मुख्यतः सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रित हैं।

इसके अलावा, नई रेलगाड़ियों की मंजूरी और चुरारू-तकराला-अंबाला कैंट-दौलतपुर चौक पैसेंजर स्पेशल ट्रेन और राय मैहतपुर-सहारनपुर-ऊना हिमाचल पैसेंजर एक्सप्रेस जैसी प्रमुख गाड़ियों का स्टाॅपेज पूरे हिमाचल के लिए काफी नहीं है। ये ट्रेनें राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासियों को तो सुविधाजनक यात्रा विकल्प प्रदान करेंगी, लेकिन हिमाचल के ज्यादातर भाग को आर्थिक और सामाजिक लाभ नहीं मिलेगा।

राज्य के मध्य और अंदरूनी हिस्सों में रेलवे नेटवर्क का विकास अभी भी एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे पूरी तरह से अनदेखा किया गया है। यदि हिमाचल प्रदेश के सभी क्षेत्रों को जोड़ने वाली व्यापक रेलवे लाइनें विकसित की जाएं, तो यह राज्य की आर्थिक प्रगति को गति दे सकती हैं और स्थानीय जनता के जीवन में सुधार ला सकती हैं।

रेलवे विकास की यह दिशा हिमाचल प्रदेश के भविष्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। यह न केवल परिवहन की सुविधा बढ़ाएगी बल्कि राज्य के विकास को एक नई गति प्रदान करेगी, जिससे हिमाचल प्रदेश के सभी नागरिकों को लाभ होगा।

अगले लेख मे हम चर्चा करेंगे कि “कैसे पठानकोट-जोगिंदरनगर लाइन का ब्रॉड गेज में परिवर्तन बन सकता है हिमाचल के विकास की कुंजी?”