प्रणब दा का यूं चले जाना

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आकस्मिक देहांत से पूरा राष्ट्र स्तबध तथा शोकाकूल है। यूं मानों पूरा भारत मातम मना रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन की जानकारी जब मुझे कल पारिवारिक सदस्यों ने दी तो मुझे कतई यकीन नहीं हुआ कि जिन प्रणब मुखर्जी जी से हमारे 70 साल के पारिवारिक रिश्ते थे वह हमारे बीच में नहीं रहे।

मैंने पिछले लगभग पांच दशक में प्रणब मुखर्जी जी को विभिन्न मंत्रालयों में कार्य करते अत्यन्त नज़दीकी से देखा है। मैंने उन्हें राजनेता के अलावा एक स्टेटसमैन, पारिवारिक मुखिया तथा मृदुभाषी, शान्तचित्त दयालु एवं अत्यन्त भावुक व्यक्तित्व का धनी पाया है। उनकी धर्मपत्नी सुर्वा मुखर्जी मेरी घनिष्ठ सहयोगी दोस्त रही हैं तथा उनके बच्चों को मैंने आंगन में खेलने से आज तक के यौवन में उभरते देखा है।

मुझे याद है कि मैंने जब भी उनसे मिलने का समय मांगा वह हमेशा मुझसे मिलने के लिए तत्पर तथा उत्सुक रहते थे। उनका मानना था कि महिला उद्यमियों को नई युवा उद्यमियों को सफलता की कुंजी का मंत्र देना चाहिए।

प्रणब मुखर्जी में देशभक्ति का जज़्बा कूट-कूट कर भरा था वह अपने पिता स्वतन्त्रता सेनानी कमादा किनकर मुखर्जी के सिद्धांतों व विचारों से पूरी तरह प्रभावित थे। इसलिए वह जीवन भर राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए व्यक्तिगत हितों की परवाह न करते हुए देश की सेवा में लगे रहे। श्री प्रणबमुखर्जी ने राजनीतिक विज्ञान, इतिहास तथा कानून की शिक्षा ग्रहण की थी जिसकी वजह से उन्हें विभिन्न विषयों की गहन जानकारी थी तथा वह विभिन्न विषायों पर विस्तृत चर्चा कर सकते थे।

मैं अकसर जब भी उनसे मिलती थी तो वह राजनीति में सकारात्मक भाव पैदा कर के राजनीति को समाज सेवा का मुख्य स्रोत विकसित करने पर बल देते थे। एक पत्रकार के नाते उनकी लेखनी में तेज धार थी और वह चैथे स्तम्भ पत्रकारिता के सकारात्मक पहलू तथा पत्रकारिता के माध्यम से समाज में चेतना, शिक्षा ,जागरूकता लाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे।

श्री प्रणब मुखर्जी व्यक्तिगत तथा पारिवारिक रिश्तों को पूरी अहमियत तथा सम्मान देते थे। जब वह पहली बार 1969 में राज्य सभा में चुन कर पहुंचे थे तथा हमारा अकसर मिलना जुलना रहता था। उनकी धर्मपत्नी सुर्वा मुखर्जी एक बेहतरीन संगीतकार थी तथा हम पारिवारिक माहौल में सभी संगीत का आनन्द उठाया करते थे।

हालांकि उन्हांेने राजनीति में अनेक ऊंचाईयों को छूआ तथा वित्त, विदेश, रक्षा, उद्योग जैसे भारी भरकम मंत्रालयों को सफलतापूर्वक चलाया लेकिन सरकारी व्यस्तताओं के बावजूद वह अपने पारिवारिक मित्रों, रिश्तेदारों दोस्तों को कभी नहीं भूले तथा त्यौहारों उत्सवों पर उन्हें हमेशा अपने घर बुलाते थे।

वह समाज के गरीब पिछड़े अपंग तथा विशिष्ट नागरिकों के प्रति अपने दिल में खास जगह रखते थे। मैंने 2014 में उन्हें व शहनाज़ हुसैन कम्पनी द्वारा दृष्टिहीन अपंग छात्रों को स्वावलम्बी बनाने के लिए शुरु किए गए मुफ्त प्रशिक्षण की जानकारी दी तो वह काफी खुश हुए तथा उतसाहित होकर उन्होंने शासाईट अकादमी के सभी दृष्टिहीन अपंग विद्यार्थियों को राष्ट्रपति भवन आमंत्रित किया। यह उनका बढ़पन था कि वह प्रत्येक छात्र से व्यक्तिगत रूप से मिले। उन्होंने छात्रों के साथ सेल्फी ली तथा सभी छात्रों को शानदार भोजन पर आमंत्रित करके उनमें आत्मविश्वास, आत्म सम्मान तथा गरिमा की भावना का संचार किया।

आज जब मैंने अन्तिम बार उनके दर्शन किए तो पाया कि उनका चेहरा संतोष से भरा था तथा वह एक समृद्ध तथा शक्तिशाली, आत्मनिर्भर भारत को छोड़कर जाती बार संतुष्ट थे।

शहनाज़ हुसैन