जब पूरा भारत भीषण गर्मी की चपेट में है, राजधानी दिल्ली से लेकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है, वहीं हिमाचल प्रदेश के भरमौर में मौसम मानो किसी स्वर्ग से कम नहीं। इस प्राकृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल का वर्तमान तापमान मात्र 20 डिग्री सेल्सियस है। हरे-भरे जंगल, गगनचुंबी पहाड़, पवित्र मंदिर, कलकल बहते झरने और शांत वादियां इसे गर्मी से राहत पाने का सर्वश्रेष्ठ गंतव्य बनाते हैं।
भरमौर: इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का संगम
चंबा ज़िले में स्थित भरमौर कभी पुराने चंबा राज्य की राजधानी था। यह क्षेत्र धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद समृद्ध है। समुद्र तल से लगभग 2195 मीटर की ऊँचाई पर स्थित भरमौर को ‘धार्मिक नगरी’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां 84 से अधिक प्राचीन मंदिरों का समूह है। भरमौर न सिर्फ तीर्थयात्रियों बल्कि एडवेंचर, फोटोग्राफी और ट्रेकिंग प्रेमियों का भी पसंदीदा स्थल बन चुका है।
🌄भरमौर के प्रमुख दर्शनीय स्थल:
1. 84 मंदिर (चौरासी मंदिर समूह) – भरमौर का आध्यात्मिक केंद्र



2. भरमानी माता मंदिर – शक्ति का प्रतीक, प्रकृति की गोद में
चौरासी मंदिर से लगभग 4 किमी की चढ़ाई पर स्थित भरमानी माता मंदिर, देवी पार्वती को समर्पित है। यहां तक पहुँचने का रास्ता देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है, और मंदिर परिसर से भरमौर की घाटियों का जो दृश्य दिखता है, वह मन को शांति और श्रद्धा से भर देता है। यह स्थल मणिमहेश यात्रा का अहम हिस्सा भी है।



3. घरेड, थला और हडसर जलप्रपात – जल की कलकल और शांति का अनुभव
भरमौर के पास स्थित ये तीनों झरने गर्मियों में पर्यटकों के लिए प्राकृतिक वातानुकूलन का काम करते हैं।
- घरेड जलप्रपात – सबसे ऊंचा और तेज बहाव वाला
- थला जलप्रपात – परिवार के साथ पिकनिक के लिए उपयुक्त
- हडसर जलप्रपात – मणिमहेश यात्रा के शुरुआती बिंदु के रूप में प्रसिद्ध
यहां का वातावरण ठंडा और हरियाली से भरपूर होता है, जिससे यह स्थल गर्मी से राहत पाने वालों के लिए आदर्श बन जाता है।

4. काकसेन-भागसेन जलप्रपात – पाप और पुण्य की कथा
यह केवल एक प्राकृतिक जलप्रपात नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक प्रतीक भी है। मान्यता है:
- भागसेन जलप्रपात = पाप का प्रतीक
- काकसेन जलप्रपात = पुण्य का प्रतीक
कहा जाता है कि कलियुग में पापों की वृद्धि के कारण भागसेन का बहाव अधिक हो गया है, जबकि सतयुग में पुण्य की अधिकता के कारण काकसेन प्रबल था। यह स्थान प्रकृति और अध्यात्म के समागम का उदाहरण है।

5. कुगती और तुंदाह वन्यजीव अभयारण्य – दुर्लभ वन्य जीवन की झलक
कुगती अभयारण्य भरमौर से लगभग 13 किमी दूर स्थित है और यह हिमालय की दुर्लभ वन्य प्रजातियों का घर है जैसे:
- हिमालयी भूरा भालू
- हिम तेंदुआ
- हिमालयन आइबेक्स
- हिमालयन थार
तुंदाह वन्यजीव अभयारण्य 64 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई और बर्फ से ढके दृश्य इसे ट्रेकर्स और बर्ड वॉचर्स के लिए आदर्श बनाते हैं।



6. बन्नी माता मंदिर और स्वामी कार्तिकेय मंदिर, कुगति – गूढ़ श्रद्धा के स्थल
- बन्नी माता मंदिर – भरमौर से 35 किमी दूर स्थित यह मंदिर माता दुर्गा को समर्पित है। श्रद्धालु यहां मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नंगे पांव चढ़ाई करते हैं।
- स्वामी कार्तिकेय मंदिर (कुगति) – भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित यह मंदिर हिमालय की गोद में स्थित है और यहां की ऊर्जा अध्यात्मिक रूप से बहुत शक्तिशाली मानी जाती है।


7. शिवशक्ति मंदिर, छतराड़ी – हिमाचली कला की प्राचीन धरोहर
भरमौर से 33 किलोमीटर दूर, छतराड़ी गांव में स्थित शिवशक्ति मंदिर को राजा मेरू वर्मन ने 650 ईस्वी में बनवाया था।
मुख्य प्रतिमा:
- 4 फीट 6 इंच ऊँची पीतल की शिवशक्ति देवी
- उनके हाथों में:
- भाला (शक्ति),
- कमल (जीवन),
- घंटी (अंतरिक्ष),
- सांप (मृत्यु और समय)
मंदिर में दक्षिण भारत की मूर्तिकला शैली की झलक भी देखने को मिलती है।



8. कुगती और ग्रीमा गांव – संस्कृति और प्रकृति का संगम
कुगती गांव हिमालयी जीवनशैली का जीवंत उदाहरण है। यहाँ की लकड़ी की पारंपरिक वास्तुकला और खेत-खलिहान मन को भा जाते हैं।
ग्रीमा व्यूपॉइंट से घाटियों, मंदिरों और बादलों की सुंदरता देखकर कोई भी अभिभूत हो जाए।



9. घराड़ू वन विश्राम गृह और इको पार्क – प्रकृति में विश्राम
यह स्थल उन लोगों के लिए है जो भीड़ से दूर, प्रकृति के बीच कुछ शांत समय बिताना चाहते हैं।
- इको पार्क में वॉकिंग ट्रेल्स, बर्ड वॉचिंग और आरामदायक झोपड़ियाँ उपलब्ध हैं।
- वन विश्राम गृह हर मौसम में ठहरने के लिए सुरक्षित और सुंदर विकल्प है।



10. कुगती पास और चोबिया पास – ट्रेकिंग का रोमांच
- कुगती पास (5020 मीटर) – चंबा को लाहौल घाटी से जोड़ता है। बर्फबारी, ग्लेशियर, झरने और अद्भुत हिमालयी दृश्य ट्रेक को रोमांचक बनाते हैं।
- चोबिया पास – भरमौर से लाहौल-स्पीति घाटी की ओर जाने का प्रसिद्ध ट्रेकिंग मार्ग।
यह ट्रेकिंग रूट्स भारत के टॉप हाई-एल्टीट्यूड ट्रेक्स में गिने जाते हैं।
11. मणिमहेश झील – शिवभक्तों का अंतिम ध्येय
समुद्र तल से 4080 मीटर ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश झील भगवान शिव को समर्पित है।
- मणिमहेश यात्रा हर साल भादों मास में होती है।
- कहा जाता है कि इस झील में भगवान शिव का मणि युक्त त्रिशूल जल के नीचे स्थित है।
श्रद्धालुओं को यह यात्रा आध्यात्मिक शुद्धि का अनुभव कराती है।



12. भरमौर की रोमांचक कैम्पिंग साइट्स
भरमौर में अनेक रमणीय स्थल कैम्पिंग के लिए उपलब्ध हैं:
- दलोटु, डुघी, कुगति, भरमाणी, रजौर, भीम गोडा, धणछो, चोबिया
यहां कैम्पिंग के दौरान आप सितारों से भरा आसमान, जलते अलाव, शांत वादियां और प्राचीन हिमालयी संगीत का आनंद ले सकते हैं।
13. लाकेवाली माता और होली गांव – प्रकृति और भक्ति का संयोग
- लाकेवाली माता मंदिर – यह शक्तिपीठ माता दुर्गा का स्थल है, जहां श्रद्धालु विशेष रूप से नवरात्रों में दर्शन करते हैं।
- होली गांव – चंबा घाटी की संकरी गलियों में स्थित यह गांव अपनी सांस्कृतिक धरोहर, हिमालयी खानपान और लोककथाओं के लिए प्रसिद्ध है।
भरमौर कैसे पहुंचे?
- निकटतम हवाई अड्डा: गग्गल (धर्मशाला), 180 किमी
- रेलवे स्टेशन: पठानकोट, 170 किमी
- बस सेवा: चंबा से हर घंटे नियमित बसें
ठहरने की व्यवस्था
भरमौर में सरकारी लॉज, होटल, होमस्टे और गेस्ट हाउस जैसे कई विकल्प उपलब्ध हैं। कुगति और डुघी में एडवेंचर लवर्स के लिए टेंट स्टे भी मिलते हैं।