हिमाचल में वेतन और पेंशन निगल रहे हैं विकास का बजट, सरकार का 45% खर्च सिर्फ कर्मचारियों पर

हिमाचल में वेतन और पेंशन निगल रहे हैं विकास का बजट, सरकार का 45% खर्च सिर्फ कर्मचारियों पर

शिमला। हिमाचल प्रदेश में सरकार का सबसे बड़ा खर्च अब वेतन और पेंशन बन चुका है। वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जहां कई योजनाओं की घोषणा की है, वहीं यह भी स्पष्ट हो गया है कि राज्य का विकास सीमित संसाधनों के बीच चल रहा है। इस वर्ष राज्य सरकार का कुल ₹26,294.08 करोड़ का व्यय केवल वेतन और पेंशन पर प्रस्तावित है, जो कि कुल राजस्व व्यय का लगभग 45% हिस्सा है।

💰 वेतन और पेंशन खा रहे बजट का बड़ा हिस्सा

राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत आर्थिक विवरण के अनुसार:

  • वेतन पर खर्च: ₹14,716.65 करोड़
  • पेंशन पर खर्च: ₹11,577.43 करोड़
  • सामाजिक सुरक्षा पेंशन: ₹1,659.62 करोड़

ये आंकड़े दर्शाते हैं कि हिमाचल की सरकार की अधिकांश वित्तीय ऊर्जा सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों की भुगतान व्यवस्था में ही खर्च हो जाती है। ऐसे में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सड़क, पेयजल और बुनियादी ढांचे जैसे जरूरी विकास कार्यों को सीमित संसाधनों में पूरा करना पड़ता है।

🛑 विकास परियोजनाएं पड़ रही हैं पीछे

राज्य के कुल बजट में से इतना बड़ा हिस्सा केवल वेतन और पेंशन पर खर्च हो जाना, अन्य योजनाओं के लिए वित्तीय स्पेस को सीमित करता है। स्वास्थ्य सेवाओं के अधूरे भवन, सड़क निर्माण की धीमी गति, शिक्षा क्षेत्र में शिक्षकों की कमी और औद्योगिक निवेश में रुकावटें—ये सभी उसी वित्तीय बोझ का परिणाम हैं जो सरकार की मजबूरी बन गया है।

🧾 हिमाचल की भौगोलिक स्थिति, OPS और बढ़ती पेंशन आबादी बना रही चुनौती

हिमाचल प्रदेश में एक बड़ी पेंशनधारी आबादी है और पुरानी पेंशन योजना (OPS) को पुनः लागू करने के बाद यह बोझ और बढ़ गया है। साथ ही पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सरकारी सेवाओं की पहुंच बनाए रखने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता भी अधिक रहती है, जिससे वेतन व्यय भी अधिक होता है।

📉 निवेश और विकास की संभावनाओं पर असर

वेतन और पेंशन का यह बढ़ता भार सरकार को नए पूंजीगत निवेश और विकासात्मक योजनाओं से वंचित कर रहा है। बजट में घोषणाएं तो होती हैं, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर क्रियान्वयन के लिए निधियों की कमी सामने आ जाती है।

🛠️ समाधान क्या हो?

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को:

  • राजस्व स्रोतों को बढ़ाना होगा,
  • गैर-जरूरी खर्चों को नियंत्रित करना होगा,
  • और नई अर्थव्यवस्था जैसे पर्यटन, उद्यमिता, सोलर पावर व डिजिटल सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना होगा।


हिमाचल प्रदेश में वेतन और पेंशन की बढ़ती लागत राज्य के संतुलित विकास के लिए सबसे बड़ी वित्तीय चुनौती बन चुकी है। यदि इस पर संतुलन नहीं बनाया गया, तो आने वाले समय में सरकार के पास जनता के लिए नई योजनाओं और बुनियादी ढांचों में निवेश के लिए संसाधन नहीं बचेंगे।