भरमौर, 07 अप्रैल, 2025: भरमौर में नव निर्मित सिविल अस्पताल की इमारत को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस अस्पताल की निर्माण प्रक्रिया न केवल अत्यधिक विलंबित रही है, बल्कि इससे जुड़े तकनीकी और प्रशासनिक खामियों ने इसे भरमौर का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बना दिया है।
चौंकाने वाली बात यह है कि इस अस्पताल का निर्माण कार्य एम्स बिलासपुर से भी अधिक समय से चल रहा है। जहां एम्स बिलासपुर का निर्माण कार्य 2017 में शुरू होकर पूरा हो चुका है, वहीं भरमौर का अस्पताल करीब 24 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद आज तक पूरा नहीं हो पाया।
लगभग 24 करोड़ खर्च, लेकिन अस्पताल अधूरा
हाल ही में हुई निरीक्षण बैठक में जो खामियां सामने आई हैं, वे चौंकाने वाली हैं:
- ओपीडी में रजिस्ट्रेशन काउंटर तक नहीं बनाए गए, न पुरुषों के लिए, न महिलाओं और न ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए।
- हाथ धोने की व्यवस्था किसी भी ओपीडी में नहीं है।
- फार्मेसी की दवा वितरण खिड़की इतनी संकरी है कि कार्य बाधित होता है।
- सीएसएसडी रूम, स्टाफ टॉयलेट, नर्सिंग स्टेशन, बायो मेडिकल वेस्ट स्टोरेज, और बेड पैन सिंक जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं।
- ऑपरेशन थियेटर में संक्रमण नियंत्रण के मानकों का पूरी तरह उल्लंघन हुआ है — मुख्य दरवाज़ा शौचालय के सामने है, न कोई चेंजिंग रूम, न चार ज़ोन का विभाजन।
- फायर सेफ्टी, जल निकासी, एमआरआई/एक्स-रे कमरे की सुरक्षा और रेडिएशन शील्डिंग, सभी मानकों की अनदेखी की गई है।
- आईसीयू, ब्लड स्टोरेज यूनिट, ट्रायज रूम, कैंटीन ब्लॉक, और यहां तक कि अल्ट्रासाउंड रूम तक की कोई व्यवस्था नहीं है।
पार्किंग सुविधा का अभाव तो सभी को दिखता है इसके लिए किसी कमेटी की जांच की आवश्यकता नहीं है।
सबसे बड़ा सवाल: जिम्मेदार कौन?
इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बावजूद यह अधूरी, असंगठित और खराब डिजाइन वाली इमारत प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
- अस्पताल भवन का डिज़ाइन किसने तैयार किया?
- निर्माण से पहले बुनियादी आवश्यकताओं का आंकलन क्यों नहीं किया गया?
- अगर यह प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग थी, तो इसमें इतना समय और पैसा क्यों लगा?
- भरमौर में प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग क्यों बनाई गई जब हिमाचल में ज्यादातर जगह अस्पतालों के लिए कंक्रीट बिल्डिंगें ही बनाई जाती हैं?
- पार्किंग की सुविधा की तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया गया?
तुलनात्मक रूप से देखें तो, भरमौर में ही बनी सरकारी डिग्री कॉलेज की कंक्रीट बिल्डिंग, जो इससे लगभग 2 गुना बड़ी है, का निर्माण इस अस्पताल से लगभग आधी लागत में पूरा किया गया है।
भ्रष्टाचार की बू?
स्थानीय लोगों का मानना है कि यह निर्माण कार्य न केवल तकनीकी रूप से दोषपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे भ्रष्टाचार और मिलीभगत की आशंका भी ज़ाहिर की जा रही है। इतने बड़े स्तर पर व्यय, वर्षों का विलंब और फिर इस तरह की कमियाँ, यह सब मिलकर एक संगठित घोटाले की ओर इशारा करते हैं। अफसोस यह है कि भरमौर की इतनी भयानक समस्या के लिए कोई आवाज नहीं उठाता।
क्या हो पाएगी उच्च स्तरीय जांच?
प्रशासन को अब इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए। यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि
- निर्माण एजेंसी ने इतनी खामियों की परवाह क्यों नहीं की?
- डिजाइन को किसने पास किया?
- 24 करोड़ की राशि कहाँ खर्च हुई?
- और सबसे महत्वपूर्ण — इस घोटाले के लिए कौन जिम्मेदार है?
- जब प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग मे इतना ज्यादा धन और समय लगना था तो कंक्रीट बिल्डिंग क्यों नहीं बनाई गई?