हिमाचल में विधायकों की सैलरी 26% बढ़ी, बिजली-पानी भत्ता खत्म

हिमाचल में विधायकों की सैलरी 26% बढ़ी, बिजली-पानी भत्ता खत्म

शिमला। आर्थिक संकट से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मंत्रियों और विधायकों की सैलरी में 26% तक की बढ़ोतरी का ऐलान किया है। इससे उनकी सैलरी में 25,000 से 30,000 रुपये तक का इजाफा होगा। हालांकि, दूसरी तरफ सरकार ने टेलीफोन, बिजली और पानी भत्ते को समाप्त कर दिया है, जिससे विधायकों को हर महीने 20,000 रुपये का झटका भी लगा है।

कितनी बढ़ी सैलरी?

संशोधित वेतन विधेयक के अनुसार, अब विधायकों को 3 लाख रुपये प्रति माह सैलरी और भत्ते के रूप में मिलेंगे। पहले यह राशि 2.10 लाख रुपये थी

  • बेसिक सैलरी: 55,000 रुपये से बढ़कर 70,000 रुपये हो गई।
  • भत्ते और अन्य सुविधाएं जोड़कर: 2.10 लाख रुपये से बढ़कर 3 लाख रुपये प्रति माह हो गए।
  • वेतन वृद्धि का नया नियम: अब हर 5 साल बाद प्राइस इंडेक्स के आधार पर विधायकों का वेतन स्वतः बढ़ेगा

भत्तों में कटौती का फैसला

सरकार ने सैलरी तो बढ़ाई, लेकिन भत्तों में कटौती भी की है—

  • विधायकों और पूर्व विधायकों का टेलीफोन भत्ता खत्म
  • बिजली और पानी का भत्ता समाप्त

इससे विधायकों को हर महीने 20,000 रुपये का नुकसान होगा। अब उन्हें केवल ऑफिस और कांस्टीट्यूएंसी अलाउंस ही मिलेगा।

सदन में सैलरी वृद्धि पर चर्चा

विधानसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन सरकार ने तीन विधेयक पेश किए—

  1. विधायकों का वेतन और भत्ता संशोधन बिल
  2. मंत्रियों का वेतन और भत्ता संशोधन बिल
  3. विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन संशोधन बिल

सभी विधेयकों को भाजपा और कांग्रेस विधायकों की सहमति से पारित कर दिया गया।

मुख्यमंत्री का तर्क

मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कहा—

“वर्तमान में विधायकों को 2.10 लाख रुपये मिलते हैं, लेकिन इनकम टैक्स और अन्य कटौतियों के बाद उनके हाथ में सिर्फ 1.60 लाख रुपये ही आते हैं। इसलिए 26% वेतन वृद्धि जरूरी थी।”

हालांकि, सरकार ने भत्तों में कटौती कर खर्च संतुलित करने की कोशिश भी की है।

राजनीतिक हलकों में चर्चा

  • जनता के बीच सवाल उठ रहे हैं कि आर्थिक संकट के बावजूद विधायकों का वेतन बढ़ाया जाना कितना उचित है?
  • विपक्ष ने भले ही बिल का समर्थन किया हो, लेकिन जनता के बीच इसकी आलोचना हो रही है
  • सरकार ने यह तर्क दिया कि महंगाई को देखते हुए यह फैसला लिया गया है, लेकिन आम जनता इसे सरकारी खर्च बढ़ाने वाला कदम मान रही है।