पवित्र मणिमहेश यात्रा: मान्यता के अनुसार माता भरमाणी के दर्शन हैं आवश्यक

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हिमाचल प्रदेश के पवित्र मणिमहेश यात्रा का एक अद्वितीय पहलू है, जिसमें माता भरमाणी के दरबार में हाजिरी न भरने वाले श्रद्धालु की यात्रा संपूर्ण नहीं मानी जाती है। मान्यता के अनुसार, पवित्र मणिमहेश यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु सर्वप्रथम माता भरमाणी के दरबार में जाते हैं, और तभी उनकी यात्रा का मणिमहेश यात्रा का आरंभ होता है।

माता भरमाणी मंदिर समुद्रतल से 9 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है, और यह तहसील मुख्यालय भरमौर से सड़क मार्ग द्वारा 6 किलोमीटर दूर व पैदल मार्ग से 3 किलोमीटर दूर है। इसलिए, पवित्र मणिमहेश यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु सर्वप्रथम माता भरमाणी के दर्शन करते हैं और फिर पवित्र कुंड में स्नान करने के बाद ही अपनी यात्रा को आरंभ करते हैं।

पुरानी कथाओं के अनुसार, भरमौर का पहले नाम ब्रह्मपुर था और माता भरमाणी का मंदिर भी चौरासी परिसर में ही था। चौरासी में ही माता का वास हुआ करता था। ऐसे में चौरासी परिसर में रात के समय पुरुषों के विश्राम को निषेध किया गया था। उस दौरान चौरासी सिद्धों का एक दल पवित्र मणिमहेश यात्रा पर जा रहा था। यात्रा पर आगे बढ़ने से पूर्व धीरे-धीरे अंधेरा होने लगा। ऐसे में चौरासी सिद्धों ने चौरासी में समतल स्थल होने की सूरत में रात यहीं पर ही रुकने का निर्णय लिया। जैसे चौरासी सिद्धों ने चौरासी परिसर में रात के समय प्रवेश किया तो इससे माता भरमाणी क्रोधित हो उठीं।

माता भरमाणी उन चौरासी सिद्धों को श्राप देने लगी। तो चौरासी सिद्धों के मुखिया जोकि स्वयं भगवान शंकर थे आगे बढ़े। भगवान शंकर को देख माता भरमाणी का क्रोध शांत हो गया। माता भरमाणी ने भगवान शंकर से क्षमा मांगी। साथ ही चौरासी परिसर में रात के समय पुरुषों के आगमन निषेध होने की बात कही। माता भरमाणी वहां से विलुप्त होकर डूगा सार नामक जगह पर प्रकट हुईं। जिसके बाद भगवान शंकर ने माता भरमाणी को वरदान दिया कि मणिमहेश यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा तभी पूर्ण होगी जब श्रद्धालु सर्वप्रथम माता भरमाणी के दर्शन करेंगे।

चौरासी परिसर के मंदिर के पुजारी ने इसकी पुष्टि की है कि चौरासी परिसर पर चौरासी सिद्धों के आगमन से पहले माता भरमाणी का वास था, लेकिन उनके आगमन के साथ ही माता वहां से गायब हो गईं। इसके बाद, भगवान शंकर ने माता भरमाणी को वरदान दिया कि पवित्र मणिमहेश यात्रा श्रद्धालुओं की तभी पूर्ण मानी जाएगी, जब वे माता भरमाणी के दर्शन करेंगे और पवित्र कुंड में स्नान करेंगे।

मान्यता है कि माता के दर्शन न करने से यात्रा का लाभ श्रद्धालुओं को नहीं मिलता है। इसलिए, पवित्र मणिमहेश यात्रा के श्रद्धालुओं के लिए माता भरमाणी के दर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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