‘चिकनगुनिया‘ अब यह रोग नया नहीं रह गया। हर साल बरसात में यह यहां वहां जहां तहां अपना दस्तक देता रहता है। यह एक तरह का आर्थराइटिस उत्पन्न करने वाला रोग है। इसका कारक एक वायरस है जिसका वाहक मनुष्य स्वयं होता है और प्रसारक डेंगू फैलाने वाली मादा एडीज इजिप्टी मच्छर। कम प्रसार संख्या एवं मृत्युदर अति न्यून होने के कारण यह भयावह की श्रेणी में तो नहीं है। किंतु हड्डियों को वर्षों के लिए कमजोर ,दर्द और सूजन युक्त कर देने के कारण यह रोग दुखदाई बहुत ज्यादा है। एक बार इसके एक्यूट संक्रमण से ठीक हुआ मरीज भी वर्षों तक जोड़ों और हड्डियों के दर्द से पीड़ित रहता है। चिकनगुनिया वायरस से संक्रमित व्यक्ति ठीक हो जाने के बाद भी पैथोलॉजिकल टेस्ट में 1 वर्ष तक पॉजिटिव आता है।
1952 में अफ्रीकी देश अल्जीरिया से चला यह रोग आज ज्यादातर अफ्रीकी, अमेरिकी, यूरोपीय एवं एशियाई देशों में अपना घर बना चुका है। इसलिए भारत ,चीन, पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,भूटान इत्यादि देश भी इससे अछूते नहीं हैं। इसे चिकनगुनिया नाम एक अफ्रीकी भाषा के शब्द से दिया गया है जिसका अर्थ है कमर पर से झुका हुआ होना। जैसा नाम वैसा काम। चिकनगुनिया से पीड़ित ना आसानी से उठ बैठ पाता है न सीधा चल पाता है। ऐसा जोड़ों में दर्द सूजन र उनके स्टिफ हो जाने के कारण होता है। 2016 से इस रोग ने कुछ जोर पकड़ा है। पहले इसे डेंगू ही समझा गया किन्तु 1953 में डॉ आर डब्ल्यू रास ने इसके वायरस की पहचान की, साथ ही डेंगू से अलग लक्षणों की पहचान होने के बाद इसे अलग रोग के रूप में जाना जा सका।
डॉ एम डी सिंह, पीरनगर, गाजीपुर,ऊ प्र,भारत यहां चिकनगुनिया के विषय पर विस्तृत जानकारी प्रदान कर रहे हैं.
कारण-टोगाविरिडे अल्फा वायरस , जिसका पहला संक्रमित अल्जीरिया की मकान्द पठार इलाके में 1952 में पाया गया। इस वायरस का संक्रमण मनुष्य से मनुष्य में होता है और इसका प्रसारक एडीज इजिप्टी और एडीज एडबो विक्टस मच्छर की मादा है।
संक्रमण काल-बरसात के मौसम में संक्रमित वाहक व्यक्ति के रक्त से संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने की चार-पांच दिनों के भीतर तेज बुखार के साथ इसके लक्षण उत्पन्न होते हैं। बुखार प्रारंभ में 103 डिग्री से 104 डिग्री फारेनहाइट तक रहता है।
लक्षण-1- संक्रमण के चार-पांच दिन के भीतर अचानक ठंड के साथ तेज बुखार।2- सर दर्द और सुस्ती।3- पूरे बदन में टूटन के साथ तेज दर्द।4- जोड़ों में सूजन और हड्डियों में भयानक पीड़ा ।5- कभी कभार मिचली और पेट दर्द।6- पैरों घुटनों और कमर में दर्द के कारण सीधा नहीं खड़ा हो पाना।7- चमड़ी पर घमौरियों की तरह दाने निकलना।8- आज से 11 दिन के भीतर रोग का दबाव कम हो जाना अथवा ठीक हो जाना है।9- जोड़ों में सूजन और दर्द महीनों रह सकता है। कभी-कभी सालों आर्थराइटिस से पीड़ित मिलते हैं चिकनगुनिया से ठीक हो चुके मरीज।10- रोग के लंबा खींचने पर आंखों में दर्द और जिसकी जोश उत्पन्न हो सकते हैं।11- हृदय के वाल्ब में दोष उत्पन्न हो सकता है और रयूमेटिक हार्ट जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
बचाव-1– एक बार संक्रमित हो जाने के बाद व्यक्ति में चिकनगुनिया के टेस्ट साल भर तक पाजिटिव आते हैं। अतः इस अवस्था में वह व्यक्ति अपने को मच्छरों द्वारा काटने से अवश्य बजावे। ताकि मच्छर उससे वायरस को लेकर दूसरे तक में पहुंचा सकें।2- मच्छरों बिना यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक नहीं पहुंच सकता। इसलिए इन मच्छरों को पैदा होने से रोका जाय। घरों ,पार्कों और सार्वजनिक स्थलों के पास जलजमाव को नियंत्रित किया जाय। नालियों को खुला ना रखा जाय। घरों में कूलर या बर्तनों में पानी लंबे समय तक छत या आंगन में ना पड़ा रहे।3- यह मच्छर दिन में ही काटते हैं और घास ,झाड़ी दफ्तरों और घरों के पर्दों के पीछे और कोनो में अपना आवास बनाते हैं। यहां से निकल कर मनुष्यों को शिकार बनाया करते हैं। ऐसी जगहों पर समय-समय पर मच्छर रोधी रसायनों का छिड़काव किया जाय।4- भरसक फुल आस्तीन की बुशर्ट अथवा कमीज और फुल पैंट जूता मोजा के साथ बाहर निकलने पर अथवा ऑफिसों में जाने पर पहना जाय। 5-जहां संक्रमण फैला हो खुले अंगों पर मच्छर रोधी तेल अथवा क्रीम का लेप किया जाय एवं दिन में भी मासक्वीटो रिपेलर्स का प्रयोग किया जाय।6- भींगने से बचें। कैल्शियम युक्त भोजन का प्रयोग किया जाय।7- व्यायाम और योग आसन द्वारा शरीर और हड्डियों को मजबूत बनाए रखा जाय।
चिकित्सा-एलोपैथी में इस रोग की कोई विशेष चिकित्सा उपलब्ध नहीं है बुखार और दर्द को कम करने की औषधियां दी जाती है।
होमियोपैथिक चिकित्सा-लाक्षणिक चिकित्सा पद्धति होने के कारण होम्योपैथी इस रोग के चिकित्सा के लिए दवाओं से काफी समृद्ध है।बचाव के लिए-1-स्टैफीसैग्रिया 1M हफ्ते में एक बार लिया जाए तो मच्छर बहुत कम काटेंगे और काटने का असर भी कम होगा।2-डल्कामारा 200 का चार दिन पर एक बार सेवन इस रोग के खिलाफ हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाएगी।
चिकनगुनिया हो जाने पर-
एकोनाइट नैप, बेलाडोना ,डलकामारा ,ब्रायोनिया, रस टॉक्स, चिनिनम सल्फ, नक्स वोमिका, चिनिनम आर्स, यूपेटोरियम पर्फ, लीडम पाल, एसिड बेंजोइक, आर्सेनिक एल्ब, आर्निका माण्ट , नेट्रम सल्फ, कैल्केरिया फांस , फाइटोलैक्का, कैक्टस जी,फारमिका रूपा,पल्साटिला और साइलीसिया इत्यादि दवाएं होम्योपैथिक चिकित्सकों की राय पर ली जा सकती हैं और आशातीत लाभ पाया जा सकता है। चिकनगुनिया के बाद बच रहे जोड़ों के दर्द से पूरी तरह मुक्ति पाई जा सकती है।
लेख – गिरधारी लाल महाजन