चम्बा – बारात आंगन से लौट जाने व लगन से पूर्व ही दुल्हन के भाग जाने के समाचार व किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे.लेकिन भरमौर क्षेत्र के जनजातीय लोग एक बार जो विवाह दस्तावेज जारी कर देते हैं तो फिर उससे पीछे हटना नामुमकिन है.
19 जून से शादियों का सीजन शुरू हो रहा है और क्षेत्र के प्रसिद्ध पुरोहित व ज्योतिषी पं. ईश्वर दत्त आज चौरासी मंदिर में शादी लिखने के कार्य में इस कदर व्यस्त हैं कि उन्हें अपनी बारी का इंतजार करते लोगों की संख्या का भी पता नहीं है.जनजातीय क्षेत्र भरमौर के लोग भगवान शिव के अनुयायी हैं तो लोग यहां हर शुभ कार्य भगवान शिव के साथ जोड़कर करते हैं.क्षेत्र में अगर किसी युवा जोड़े का विवाह तय होता है तो चौरासी परिसर में स्थित भगवान शिव के मंदिर में ही इस शादी पर मुहर लगाई जाती है.दोनों पक्षों के पुरोहित मंदिर चबूतरे पर बैठ कर वर वधु की कुंडली का मिलान कर विवाह की तारीख,समय निर्धारित कर एक लिखित अनुबंध वर व वधु पक्ष को देते हैं.जिसे गद्दी बोली में ‘लखणोतरी’ कहा जाता है.लखणोतरी विवाह का एक लिखित दस्तावेज है जिस का पालन हर हाल में किया जाता है.भले ही परिवार में कितनी भी बड़ी अनहोनी न घट जाए लेकिन लखणोतरी में तय तारीख व लगन के अनुसार विवाह प्रक्रिया पूरी करना आवश्यक माना जाता है.अपना कार्य पूर्ण करने पश्चात पंडित ईश्वर दत्त बताते हैं कि इस लखणोतरी में भगवान शिव को साक्षी बनाकर विवाह का दस्तावेज तैयार किया जाता है.जिसके पहले शब्द ‘शिवजी तेरी पिठ,कूल्जा माता तेरी गोद,गौरा माता सहाई’ होते हैं जोकि संस्कृत श्लोक न होकर गद्दी बोली में लिखे जाते हैं.एक बार यह लखणोतरी पूरी हो गई तो फिर यह किसी भी दशा में तोड़ी नहीं जा सकती अर्थात विवाह को रोका नहीं जा सकता.ऐसा करना भगवान शिव का निरादर माना जाता है और वैसे भी त्रिनेत्रधारी के कोपभाजन का कोई भी शिकार नहीं बनना चाहता.
ईश्वर दत्त बताते हैं कि सदियों के इस इतिहास में आज तक लखणोतरी में तय विवाह कभी अपूर्ण नहीं रहे हैं.कई बार ऐसे मौके भी आए हैं कि बेटे की बारात या बेटी की डोली उठने से पहले ही घर में किसी की मृत्यु हो गई लेकिन विवाह प्रक्रिया कभी नहीं रुकी.
उन्होंने कहा कि आज आषाड़ सक्रांति दिवस है.इस दिन सूर्य नई राशी में प्रवेश करता है इस कारण इसे पवित्र व शुभ दिन माना जाता है.इसीलिए आज चौरासी मंदिर प्रांगण में विवाह रस्म लिखवाने के लिए लोगों की भारी भीड़ जमा रही.