बिना बैग स्कूल जाते बच्चों को निहारते रह गए पीठ पर बस्ता उठाए निजि स्कूल के बच्चे .

पड़ोसी बच्चों को बिना बैग स्कूल जाते देख निजि स्कूल में पढ़ने वाली स्मृति बोली मुझे भी सरकारी स्कूल है जाना.

आज सुबह गांव के सब बच्चे स्कूल के लिए सामान्य दिनों की तरह ही तैयार हो रहे थे.लेकिन तभी निजि स्कूल में पढ़ने वाली समृति ने सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को बिना बैग लिए स्कूल जाते देखा तो उसने अपनी मां से पूछा कि आज बच्चे बिना बैग स्कूल क्यों जा रहे हैं तो समृति की मां ने कहा कि सरकार ने आज बैग फ्री डे घोषित किया है इसलिए आज सभी स्कूलों में बच्चे बिना स्कूल बैग के जाएंगे व वहां खूब खेलकूद,पेंटिंग,नारा लेखन जैसे अन्य मनोरंजक क्रिया कलाप करेंगे.तो स्मृति तपाक से बोली तो मैं भी बैग लेकर नहीं जाऊंगी.बच्ची को समझाते हुए उसकी मां ने कहा कि बेटा तुम सरकारी नहीं बल्कि निजि स्कूल में पढ़ती हो जहां सरकार के नियम कायदे नहीं चलते.निजि स्कूलों के कायदे कानूनों का डर दिखा कर स्मृति की पीठ पर बैग लादकर स्कूल तो भेज दिया लेकिन स्मृति व उसके जैसे सैकड़ों बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले उन बच्चों को ललचाई नजरों से देखते रह गए जो बिना स्कूल बैग लिए मस्ती भरे अंदाज में स्कूल गए.

सरकार ने तो महीने में मात्र एक दिन के लिए स्कूल के बच्चों को बस्ते के बोझ से निजात दिलाई है.ताकि बच्चों को तनाव से मुक्त रखा जा सके.लेकिन निजि स्कूल तो बच्चों को इन्सान के बजाए मशीन बनाने पर तुले हुए हैं.एक तो सरकारी स्कूलों के बच्चों को स्कूल में बिना स्कूल बैग के बुलाया गया वहीं स्कूली बच्चों ने मनोरंजक खेल कूद, पेंटिंग वगैरह कर मिड डे मील का भी मजा लिया तो वहीं दूसरी ओर भरमौर क्षेत्र के निजि स्कूलों में आज बच्चों को बैग के साथ बुलाया गया था.निजि स्कूल के बच्चों को आज भी सामान्य दिनों की तरह क्लास वर्क,क्लास टैस्ट जैसे उबाऊ क्रियाकलापों से गुजरना पड़ा.बच्चे तो आखिर बच्चे हैं वे भी चाहते हैं कि उन्हें भी किताबों से थोड़ा आराम मिले छुट्टी भले ही न मिले लेकिन स्कूल में कुछ अलग करने को मिले.

क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि निजि स्कूल इस मामले में भले ही सौ बहाने बनाएं लेकिन बच्चों के मानसिक विकास के लिये उन पर बढ़ रहे शारीरिक व मानसिक बोझ को कम करना बहुत आवश्यक है. सरकार को नियम लागू करने के लिए कड़े निर्णय लेने चाहिए.