रोजाना24ः कोरना वायरस के इस संकट काल में लागू लाॅकडाऊन के पहले चरण मेंं लोगों ने सरकार के निर्देशों को गम्भीरता सेे लेते हुए ‘जहां हैं वहींं रहें’ के नियम की बखूबी पालना की।इस दौरान प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे थे।और सरकार लोगों की आवाजाही को पूर्णतया प्रतिबंधित रखनेे का प्रयास कर रही थी ताकि कोरोना वायरस को एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुंचने से रोका जा सके लेेकिन इस चरण में भी जुगत लगाने वालों ने घर वापिसी कर ही ली ।इसके बावजूद हजारों लोग ऐसे भी थे जो घर वापिसी के लिए अस्थाई निवास स्थानों में बैठ कर लाॅकडाऊन खुलने का इंतजार कर रहे थे।इसमें ज्यादा संख्या ऋतु परिवर्तन के साथ प्रवास करने वाले जनजातीय लोगों,फैक्ट्रियों में कामकरने वाले श्रमिकों,रिक्शा चालकों, छात्रों व प्रशिक्षुओं की थी। लाॅकडाऊन का दूसरा चरण लागू होने के बाद घर वापिसी का इंतजार कर रहे लोगों का सब्र टूटने लगा।क्योंकि एक ओर तो कामगारों व छात्रों को रहने व भोजन की समस्या हो रही थी तो दूसरी ओर लाॅकडाऊन के 21 दिनों बाद मौसम भी बदल चुका था और अपने घरों से दूर लोगों का मिजाज भी।ऋतु परिवर्तन के दौरान गर्म भूभागों में रह रहे प्रवासी कबायली लोग भी अ्पने खेतोंं में खरीफ फसल की बुआई के लिए घर लौटना चाहते थे।और अब तो सरकार पर भी दबाव बढ़ने लगा क्योंकि आम जनता के अलावा बड़े अधिकारियों के रिस्तेदारों से लेकर नेता तक लाॅॅकडाऊन के दौरान घर से बाहर थे।
लाॅकडाऊन के दूसरे चरण का हफ्ता भर बीतने के साथ प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले आने भी रुक से गए तो सरकार ने भी प्रदेश व जिला से बाहर फंसेे लोगों की घर वापिसी के लिए कर्फ्यू पास बनाना शुरू किया और राज्य व राज्य से बाहर के लोगों को घर पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हुई। सरकार ने कर्फ्यू में यात्रा पास देकर लोगों की घर वापिसी का रास्ता प्रशस्त तो किया लेकिन कर्फ्यू पास के इन नियमों से आम लोगों को लाभान्वित करने में सरकार चूक गई।इसका लाभ केवल वही लोग उठा पाए जिनके पास अपने वाहन थे,जो टैक्सी का भारी किराया देकर घर पहुंच सकते थे । विशेष वर्ग को घर पहुंचाने के लिए सरकार ने निगम की बसें तक भेज दीं। लेकिन ऐसे हजारों लोग तो आज भी वहीं फंसे हैं जो केवल बस किराया देने का सामर्थ्य रखते हैं ।
युकां महासचिव सुरेश ठाकुर बताते हैं प्रदेश सरकार कोरोना से निपटने के लिए आसान उपाय कर सकती थी।लोगों को पहले चरण में ही उनके सम्बंंधित ब्लाॅॅक केे बफर क्वारंंटाईन केन्द्रों में 28 दिनों केे लिए क्वारंटाईन किया गया होता तो वे वहांं यह अवधि पूरी कर अब तक अपने घर जा चुके होते।सरकार जिस ओर से दबाव अ्धिक हुआ उस ओर के निर्णय ले रही है।25 हजार के करीब लोग अन्य राज्यों से प्रदेश में पहुंच चुके हैं जिन्होंने प्रदेश की सीमा पर शारीरिक दूरी के नियमों को भी ताक पर ऱखा ऐसे में अगर एक दो संक्रमित लोग भी प्रदेश में पहुंच गए हों तो परिणाम गम्भीर हो सकते हैं।
अधिवक्ता करण शर्मा बताते हैं कि सरकार को चाहिए वे ऐसे नियम न बनाए जिससे आम व विशेष नागरिकता का एहसास हो। उन्होंने कहा कि सरकार प्रदेश के उन गरीब लोगों को घर वापिसी के लिए बसों की व्यवस्था करे।क्योंकि गरीब परिवार भी अपने खेतोंं व बगीचों काम करना चाहते हैं ताकि वे कुछ माह के लिए राशन की व्यवस्था कर सकें।
उपायुक्त चम्बा विवेक भाटिया कहते हैं कि किसानों बागवानों व शीतकालीन प्रवास से लौटने वाले लोगों के लिए बसों की व्यवस्था करने का निर्णय लेना सरकार के हाथ में है।
ऐसे में लोग केवल उम्मीद ही कर सकते हैं कि सरकार उनको सुरक्षित घर पहुंचाने के लिए बसों की व्यव्स्था करेगी।