रोजाना24,चम्बा :- प्रदेश के शीतकालीन अवकाश वाले स्कूलों में आज परीक्षा परिणाम के साथ साथ ‘शिक्षा संवाद’ का भी आयोजन किया गया.शिक्षा संवाद का आयोजन हर स्कूल में किया गया लेकिन गिनेचुने अभिभावकों न नाममात्र स्कूलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई.कई स्कूलों में अध्यापक अभिभावकों के इंतजार में दोपहर बाद तक इंतजार करते दिखे लेकिन बच्चों की पढ़ाई में अध्यापकों पर दोष बढ़ने वाले अभिभावकों ने इस शिक्षा संवाद में पहुंचना जरूरी नहीं समझा.हालांकि इस दौरान कई स्कूलों में बच्चों की शिक्षा को लेकर संवेदनशील अभिभावक इस कार्यक्रम पहुंचे और उन्होंने बच्चों की वार्षिक प्रगति रिपोर्ट पर अध्यापकों से चर्चा भी की.
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला भरमौर के प्रधानाचार्य व एसएमसी प्रधान ओम प्रकाश ने कहा कि अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल को मॉडल स्कूल में तबदील किया जाए ताकि बच्चों को निजि स्कूलों की अंग्रेजी माध्यम वाली शिक्षा के मोह से छुटकारा दिलवाया जाए.रावमापा कन्या भरमौर के प्रधानाचार्य प्रकाश भारद्वाज ने कहा कि शिक्षा संवाद में अभिभावकों ने स्कूल के क्लास रूम व कैम्पस का निरीक्षण कर पाया कि स्कूल में छात्राओं के शौचालय,सभागार नहीं होने से स्कूल स्टाफ व छात्राओं को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष सुरिंदर पटियाल ने कहा कि बच्चों को परीक्षा परिणाम के साथ नये सत्र में पढ़ाई के लिए पाठ्य पुस्तकें भी मुहैया करवाई जा रही हैं.नये शैक्षणिक सत्र के लिए प्रथम से पांचवी कक्षा का पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है.नया पाठ्यक्रम ज्यादा रोचक व ज्ञानवर्धक है.
वहीं शिक्षा खंड गरोला के बीआरसी सुशील शर्मा ने कहा कि इस शिक्षा खंड के रावमापा उलांसा,गरोला,रामापा स्वाई,तयारी,नयाग्रां,बजोल में शिक्षा संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं.इन संवाद कार्यक्रमों की प्रस्ताव प्रति जिनमें बच्चों की एफ ए-1 से लेकर एस ए- के बीच पढ़ाई के उतार चढ़ाव, बच्चों की पढ़ाई के प्रति अरुचि,अभिभावकों द्वारा बच्चों की पढ़ाई के प्रति लापरवाही बरतना जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई.अभिभावकों ने स्कूलों में व्यवस्थाओं की भी पड़ताल की जिन्हें सुधारने के लिए एसएमसी को कहा गया.
इस शिक्षा संवाद के बाद अभिभावकों से बातचीत करने पर यह बात सामने आई है कि अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं.चूंकि दूर दराज के गांवों में निजि स्कूल नहीं हैं इसलिए वे मजबूरी में अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं.अगर सरकार सभी सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा शुरू कर दे तो सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ सकती है.वहीं स्कूलों में बच्चों के कमजोर स्तर को लेकर हो हल्ला करने वाले अभिभावकों की अनुपस्थिति ने जता दिया कि बच्चों की शिक्षा को कमजोर करने में उनका योगदान भी कम नहीं है.