भरमौर: गद्दी भाषी फिल्मों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाले अभिनेता राजेन्दर का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 23 अप्रैल 2025 को उन्होंने कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद अंतिम सांस ली। वे पिछले पांच वर्षों से कैंसर से पीड़ित थे, लेकिन जीवनभर मुस्कुराते और आशावादी बने रहे।
‘पाल’ और ‘सुन्नी भुंकू’ से मिली अभिनय पहचान
गद्दी फिल्म जगत में राजेन्दर को पहचान दिलाने का श्रेय प्रसिद्ध निर्देशक मनोज चौहान को जाता है। उन्होंने राजेन्दर की स्वाभाविक अभिनय क्षमता को पहचाना और उन्हें पहले गद्दी जीवन पर आधारित डाक्यूमेंट्री ‘पाल’ में, फिर चर्चित फिल्म ‘सुन्नी भुंकू’ में मुख्य भूमिका में अभिनय का अवसर दिया।
राजेन्दर की सहज, प्रभावशाली और आत्मीय अभिनय शैली ने दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। निर्देशक मनोज चौहान ने एक साक्षात्कार में कहा था, “राजेन्दर जी की अदाकारी में एक अनगढ़ सच्चाई थी, जो स्क्रीन पर उतरते ही दर्शकों को बाँध लेती थी। वह सिर्फ अभिनय नहीं करते थे, वह किरदार को जीते थे।”
सेना से सेवा निवृत्ति के बाद पारंपरिक जीवन में लौटे
राजेन्दर भारतीय सेना में सू़बेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके उपरांत उन्होंने अपने पारंपरिक पेशे, भेड़-बकरी पालन, को अपनाया और गद्दी जनजीवन से जुड़ाव बनाए रखा। वे केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि गद्दी संस्कृति के प्रतीक और उसके प्रचारक भी थे।
कैंसर से संघर्ष के बावजूद जिया मुस्कुराता जीवन
हालांकि वे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, फिर भी उन्होंने हमेशा सकारात्मक और प्रसन्नचित्त जीवनशैली अपनाए रखी। उनके परिचितों के अनुसार, बीमारी के दौरान भी वे सामाजिक रूप से सक्रिय और हँसमुख बने रहे।
वे अपने पीछे पत्नी, दो पुत्र और चार पुत्रियाँ छोड़ गए हैं। उनकी सभी संतानें विवाहित हैं और उन्हे अपने पिता की उपलब्धियों पर गर्व है। उनके निधन से गद्दी समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है। उनकी सांस्कृतिक सेवाओं और फिल्मी योगदान को लंबे समय तक स्मरण किया जाएगा।