हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा व्यावसायिक वाहनों में डस्टबिन लगाना अनिवार्य किया जाना निस्संदेह एक सराहनीय प्रयास है, लेकिन यह प्रयास तभी सार्थक होगा जब सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा फेंकने की प्रवृत्ति पर प्रभावी रोक लगाई जाए। विशेषज्ञों और पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि केवल वाहन चालकों और मालिकों को डस्टबिन लगाने के लिए बाध्य करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति पर ₹500 का सीधा जुर्माना लगाया जाना चाहिए जो सार्वजनिक स्थान पर कचरा फैलाते हुए पकड़ा जाए।
🧍♂️ हर नागरिक जिम्मेदार, सिर्फ वाहन चालक नहीं
हाल ही में परिवहन विभाग ने पूरे राज्य में उन व्यावसायिक वाहनों की पासिंग रोक दी, जिनमें कार बिन (कूड़ेदान) नहीं लगे थे। साथ ही यह हिदायत दी गई कि बिना डस्टबिन के कोई भी वाहन पास नहीं किया जाएगा। हालांकि, यह निर्देश केवल वाहनों तक सीमित है, जबकि सड़कों पर कूड़ा फैलाने वाले असली जिम्मेदार कई बार आम राहगीर, पर्यटक या स्थानीय नागरिक होते हैं, जो बेधड़क प्लास्टिक की बोतलें, पैकेट और खाने-पीने का सामान सड़क पर फेंकते हैं।
🚫 जब जुर्माना नहीं लगेगा, तो चेतावनियां बेअसर रहेंगी
बुधवार को शिमला सहित अन्य जिलों में क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों (RTO) और मोटर वाहन निरीक्षकों (MVI) ने वाहन मालिकों को डस्टबिन लगाने की हिदायत दी, लेकिन अभी तक किसी भी व्यक्ति पर न सड़क पर कूड़ा फेंकने के लिए चालान किया गया है, न कोई प्रत्यक्ष दंड लगाया गया है। परिणामस्वरूप, लोग इसे एक औपचारिकता मानकर नियमों को नजरअंदाज करते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति खुले में कूड़ा फेंकता है — चाहे वह वाहन में हो, पैदल हो या पर्यटक — उस पर ₹500 का ऑन-द-स्पॉट जुर्माना लगाया जाना चाहिए। यह न केवल अनुशासन स्थापित करेगा, बल्कि अन्य लोगों को भी सावधान करेगा।
📉 नियम है, लेकिन अनुपालन शून्य
हिमाचल प्रदेश जीव अनाशित कूड़ा-कचरा नियंत्रण अधिनियम, 1995 के तहत सार्वजनिक स्थलों पर कचरा फेंकना दंडनीय अपराध है। लेकिन सवाल उठता है —
- कितने लोगों पर अब तक यह कानून लागू किया गया?
- क्या कोई रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है जिसमें यह दर्शाया गया हो कि किसी राहगीर या पर्यटक से जुर्माना वसूला गया हो?
कानून का होना तब तक बेअसर है, जब तक उसका पालन न करवाया जाए।
🌍 केवल सिस्टम नहीं, व्यक्ति का व्यवहार भी है समस्या
हर साल हिमाचल में लगभग 1.5 से 2 करोड़ पर्यटक आते हैं, जिनमें से अधिकांश शिमला, मनाली, धर्मशाला और डलहौजी जैसे प्रमुख स्थलों की ओर रुख करते हैं। इस भारी दबाव के चलते राज्य का पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित होता है।
सड़कों पर फेंका गया प्लास्टिक कचरा न केवल दृश्य प्रदूषण फैलाता है, बल्कि जानवरों, नदियों और मिट्टी को भी दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाता है।
✅ सुझाव: सरकार को क्या करना चाहिए?
- हर जिले में नगर निगम या नगर पंचायत को यह अधिकार दिया जाए कि वह सीधे ऑन-द-स्पॉट ₹500 का चालान काट सके।
- हर प्रमुख पर्यटन स्थल और बस स्टैंड पर CCTV कैमरे लगाए जाएं, जिनके आधार पर डिजिटल चालान जारी किया जा सके।
- डस्टबिन की उपयोगिता की निगरानी हो, सिर्फ प्रतीकात्मक डस्टबिन लगाकर खानापूर्ति न की जाए।
- स्कूलों-कॉलेजों में “नो लिटरिंग” जागरूकता अभियान चलाए जाएं, ताकि नई पीढ़ी स्वच्छता को व्यवहार का हिस्सा बनाए।
- ट्रेकिंग ग्रुप, होटल, रेस्टोरेंट और टूर ऑपरेटर्स पर भी स्वच्छता नियमों के उल्लंघन पर दंड का प्रावधान हो।
🧃 छोटी प्लास्टिक बोतलों पर प्रतिबंध एक सकारात्मक कदम
हिमाचल सरकार ने 500 एमएल या उससे कम क्षमता की प्लास्टिक पीईटी पानी की बोतलों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। यह नियम अब सरकारी विभागों, बोर्डों, निगमों सहित निजी आयोजनों में भी लागू होगा। इसके विकल्प के रूप में कांच की बोतलें, स्टील के कन्टेनर और वॉटर डिस्पेंसर को प्राथमिकता दी जाएगी। यह पर्यावरण को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने की दिशा में ठोस प्रयास है।
📢 जुर्माना ही बनेगा जिम्मेदारी का आधार
केवल नीतियां बनाना और अपील करना पर्याप्त नहीं है। जब तक नियमों का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक सड़कों से कूड़ा हटाना संभव नहीं। सरकार ने जब डस्टबिन न होने पर वाहन चालकों से ₹10,000 तक जुर्माना वसूलने का प्रावधान रखा है, तो सड़कों पर कचरा फेंकने वाले किसी भी नागरिक पर ₹500 का चालान लगाना तर्कसंगत और आवश्यक है।
हिमाचल की सुंदरता को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम सभी सिर्फ दूसरों पर जिम्मेदारी डालने की बजाय स्वयं जागरूक और उत्तरदायी नागरिक बनें।