हिमाचल में पंचायती राज चुनावों की तैयारी तेज, अवैध कब्जाधारियों और बकायेदारों पर लगी रोक

हिमाचल में पंचायती राज चुनावों की तैयारी तेज, अवैध कब्जाधारियों और बकायेदारों पर लगी रोक

शिमला: हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। राज्य सरकार और पंचायती राज विभाग ने इस वर्ष दिसंबर में संभावित चुनावों को ध्यान में रखते हुए सख्त नियमों और नई शर्तों के साथ तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस बार अवैध कब्जाधारियों, सहकारी समितियों के बकायेदारों और अपराधियों को चुनावी दौड़ से बाहर रखा जाएगा।

❌ अवैध कब्जा और बकाया देनदारी पर रोक

पंचायती राज विभाग ने स्पष्ट किया है कि वे व्यक्ति जिन्होंने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया है या जिन पर पंचायत अथवा सहकारी समितियों (कोऑपरेटिव सोसायटी) की बकाया देनदारी है, वे पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। यह पहली बार है जब सहकारी समितियों की बकाया राशि को भी अयोग्यता का आधार बनाया गया है।

पंचायती राज विभाग के अतिरिक्त निदेशक केवल शर्मा ने जानकारी देते हुए कहा, “जो भी व्यक्ति अवैध कब्जाधारी है या किसी पंचायत अथवा सहकारी समिति का बकायेदार है, वह पंचायती चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं होगा।”

इसके साथ ही, अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए व्यक्ति भी चुनाव में हिस्सा नहीं ले पाएंगे।

🏘️ 3,577 पंचायतों में होंगे चुनाव, 30 जून तक होगा परिसीमन

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में 3,577 पंचायतें, 91 विकासखंड, और जल्द बनने जा रहे 250 जिला परिषद वार्ड हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार से कहा है कि 30 जून तक डिलिमिटेशन (परिसीमन) की प्रक्रिया पूरी की जाए ताकि चुनावों की समय पर घोषणा हो सके।

पिछले चुनावों की तर्ज पर इस बार भी दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में चुनावों की अधिसूचना जारी होने की संभावना है। 2021 में ये चुनाव 17, 19 और 21 जनवरी को तीन चरणों में संपन्न हुए थे।

🗳️ प्रधान पद बना सियासत का केंद्र

पंचायती राज चुनावों में प्रधान और उपप्रधान के पदों को लेकर सबसे अधिक रुचि देखी जाती है। यह पद गांव के सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व, विकास योजनाओं की निगरानी और स्थानीय राजनीति में प्रवेश के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि हर चुनाव में सबसे अधिक दावेदार इसी पद के लिए सामने आते हैं।

प्रधान बनने के बाद कई प्रतिनिधि जिला परिषद, नगर परिषद, विधायक और यहां तक कि सांसद बनने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। ऐसे में यह चुनाव स्थानीय राजनीति की नींव और भविष्य की दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

🌐 बदलते नियमों से बदलेगा चुनावी परिदृश्य

इस बार के चुनाव कई मायनों में अलग और अधिक कठोर नियमों के तहत होंगे। यह बदलाव उन लोगों के लिए एक बड़ा संदेश है जो पंचायत का प्रतिनिधि बनने के बावजूद नियमों की अनदेखी करते हैं। अब उम्मीदवारों के लिए स्वच्छ छवि और ज़िम्मेदार नागरिक होना अनिवार्य शर्त बन गई है।