अध्यापक ने सरकारी स्कूल में दाखिल करवाई अपनी बेटी

बात सामान्य है लेकिन आज के दौर में जरूर चौंका सकती है.प्राथमिक पाठशाला हिंड (गैहरा) में तैनात जेबीटी अध्यापक कमल कुमार ने अपनी पांच वर्षीय बेटी गीत भारद्वाज़ को राजकीय प्राथमिक बेही,शिक्षा खण्ड क्याणी,चम्बा में दाखिल करवा है.कमल कुमार ने अपनी बच्ची को सरकारी स्कूल भेजकर उन अध्यापकों को सीख दी है जो स्वयं तो सरकार से मोटी तनख्वाह तो लेते हैं लेकिन अपने ही जैसे अध्यापकों की काबिलियत पर विश्वास नहीं करते,और अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए अंग्रेजी माध्यम वाले निजि स्कूलों में दाखिल करवाते हैं.

कमल कुमार कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में जितनी सुविधाएं मिलती हैं ऩिजि स्कूल तो उसके नजदीक भी नहीं ठहरते.लेकिन इसके बावजूद लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों नें नहीं भेजते.उन्होंने सरकारी स्कूलों में तैनात सब अध्यापकों से अपील की कि वे अपनी काबिलियत पर भरोसा रखें और सब लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजें.सरकारी स्कूलों की गिरती साख को मजबूत करने के लिए अब अध्यापकों को ही पहल करनी होगी.यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है.हम अध्यापकों को यह नहीं सोचना है कि किसी नेता या अधिकारी का बच्चा निजि स्कूल में पढ़ रहा है तो हम भी निजि स्कूलों में ही अपने बच्चों को पढ़ाएंगे.बल्कि हमें यह चुनौति अपने लिए तैयार करनी होगी कि नेता,अधिकारी व बड़े बड़े व्यवसायी भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिल करवाने के लिए लालायित हों.

उन्होंने कहा कि वे चाहते तो अपनी बेटी को भी निजि स्कूल में भेज सकते थे क्केयोकि उनके परिवार के सुविधा व साधन भी हैं.उनके घर के पचास मीटर की दूरी पर ही एक निजि स्कूल है जबकि सरकारी स्कूल तो उससे अधिक दूर है.उन्होंने कहा कि वे अपने छोटे बेटे को भी सरकारी स्कूल में पढ़ाएंगे.

कमल कुमार जैसे उच्च विचार वाले अध्यापक की इस पहल को सोशल मीडिया में तो खूब प्रशंसा मिल रही है.उनकी इस पहल से एक अध्यापक भी अगर प्रेरणा लेकर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिल करवाता है तो यह सरकारी स्कूलों म्ं घटती बच्चों की संख्या पर रोक लगाने के लिए टर्निंग प्वाइंट हो सकता है.अगर सामान्य लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिल करवा कर शिक्षा की गुणवत्ता पर नजर रखें तो सरकारी स्कूलों में नब्बे के दशक की साख फिर से बन सकती है.