हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अब पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को सिर्फ इंग्लिश मीडियम में पढ़ाया जाएगा। शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने स्पष्ट किया है कि इस निर्णय में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। सरकार ने यह कदम प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच के अंतर को कम करने और सरकारी स्कूलों में नामांकन (एनरोलमेंट) बढ़ाने के लिए उठाया है।
पहली और दूसरी कक्षा में पहले से लागू, अब तीसरी से पांचवीं तक भी अनिवार्य
शिक्षा मंत्री ने बताया कि पहली और दूसरी कक्षा के छात्र पहले से ही इंग्लिश मीडियम में पढ़ रहे हैं। इस साल से यह नियम तीसरी, चौथी और पांचवीं कक्षा के छात्रों पर भी लागू होगा। विंटर वेकेशन स्कूलों में छात्रों को इंग्लिश मीडियम की किताबें भी वितरित की जा चुकी हैं। अब शिक्षकों को इन्हीं किताबों से पढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।
शिक्षकों और अभिभावकों की बढ़ी चिंता
हालांकि, इस फैसले का कुछ शिक्षक और अभिभावक विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अधिकतर छात्र पिछले वर्षों तक हिंदी मीडियम में पढ़ाई कर रहे थे, अब अचानक से उन्हें इंग्लिश मीडियम की किताबें पकड़ाना मुश्किल खड़ा कर सकता है।
एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“तीसरी से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को अचानक इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना मुश्किल हो सकता है। यह बदलाव चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए था। पहले इसे कुछ मॉडल स्कूलों में शुरू किया जाता और अभिभावकों की सहमति ली जाती।”
योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की मांग
शिक्षक संगठन इस फैसले को धीरे-धीरे लागू करने की मांग कर रहे हैं। उनका सुझाव है कि सरकार को पहले कुछ चयनित स्कूलों में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू करना चाहिए था। इसके बाद, छात्रों और शिक्षकों की प्रतिक्रिया के आधार पर इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाता।
शिक्षकों को दी जाएगी विशेष ट्रेनिंग
शिक्षा विभाग ने इस विषय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो शिक्षक इस बदलाव को लेकर असहज हैं, उनके लिए विशेष ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है। अगर शिक्षकों से इस संबंध में अधिक शिकायतें आती हैं, तो उनके लिए स्पेशल ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किया जाएगा, जिससे वे छात्रों को प्रभावी ढंग से इंग्लिश मीडियम में पढ़ा सकें।
सरकार अपने फैसले पर अडिग
शिक्षा मंत्री ने साफ कर दिया है कि सरकार इस फैसले में कोई बदलाव नहीं करेगी। उनका मानना है कि इंग्लिश मीडियम लागू करने से सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार होगा और अधिक छात्र प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की ओर रुख करेंगे।
हालांकि, इस फैसले के लागू होने के बाद इसका असर क्या रहेगा, यह देखने वाली बात होगी।