अस्पतालों में डॉक्टरों के दुर्व्यवहार और अभद्र भाषा का बढ़ता संकट: मरीजों और परिजनों पर मानसिक आघात

अस्पतालों में डॉक्टरों के दुर्व्यवहार और अभद्र भाषा का बढ़ता संकट: मरीजों और परिजनों पर मानसिक आघात

अस्पतालों में मरीजों के साथ दुर्व्यवहार और डॉक्टरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अभद्र भाषा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। जहां मरीज पहले ही बीमारी और शारीरिक पीड़ा से गुजर रहे होते हैं, वहीं कई बार डॉक्टरों का असंवेदनशील व्यवहार उनकी मानसिक पीड़ा को और बढ़ा देता है। यह स्थिति न केवल चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है बल्कि मरीजों में भय और अविश्वास का माहौल भी पैदा करती है।

मरीजों को मिलती है दोहरी पीड़ा

मरीज अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं, लेकिन कई बार वहां उन्हें डॉक्टरों और अन्य स्टाफ के अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में डॉक्टर मरीजों से रूखा व्यवहार करते हैं, गाली-गलौच तक की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, और उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेते। यह मानसिक आघात मरीजों के स्वास्थ्य पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव डालता है।

जब कोई व्यक्ति अपने प्रियजन को अस्पताल में भर्ती कराता है, तो वह पहले ही मानसिक तनाव और चिंता से गुजर रहा होता है। ऐसे समय में डॉक्टरों और अस्पताल स्टाफ का दुर्व्यवहार स्थिति को और अधिक दर्दनाक बना देता है। मरीज के परिजन को यह उम्मीद होती है कि डॉक्टर शालीनता से पेश आएंगे। लेकिन जब वे रूखा व्यवहार करते हैं, उपेक्षा करते हैं, या अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं, तो यह मानसिक आघात लंबे समय तक याद रह जाता है।

क्या कहती हैं मौजूदा व्यवस्थाएं?

हालांकि, अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा और सम्मान को बनाए रखने के लिए कुछ नियम लागू किए गए हैं, लेकिन इनका सही तरीके से पालन नहीं किया जाता। अधिकतर सरकारी अस्पतालों में शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया या तो बहुत जटिल होती है या फिर उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।

सुधार के लिए जरूरी कदम

  1. सीसीटीवी कैमरे और माइक्रोफोन अनिवार्य किए जाएं – अस्पतालों में डॉक्टरों और स्टाफ के व्यवहार की निगरानी के लिए सभी परामर्श कक्षों, वार्डों और अन्य प्रमुख स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे और ऑडियो रिकॉर्डिंग वाले उपकरण लगाए जाने चाहिए। इससे दुर्व्यवहार की घटनाओं को रोका जा सकता है और प्रमाण के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  2. डॉक्टरों के लिए पहचान नाम-पट्ट अनिवार्य हो – सभी डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को अपना नाम, पदनाम, और बैच नंबर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य होना चाहिए ताकि मरीज को यह पता चल सके कि उनका इलाज कौन कर रहा है।
  3. शिकायत निवारण प्रणाली को मजबूत किया जाए – हर अस्पताल में एक हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए जहां मरीज या उनके परिवार वाले डॉक्टरों के गलत व्यवहार की शिकायत कर सकें। यह हेल्पलाइन 24×7 सक्रिय रहनी चाहिए, और शिकायतों का निपटारा निर्धारित समय सीमा के भीतर किया जाना चाहिए।
  4. मरीजों के अधिकारों को लेकर जागरूकता अभियान – मरीजों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे गलत व्यवहार का शिकार होने पर उचित कदम उठा सकें। अस्पतालों में प्रमुख स्थानों पर सूचना बोर्ड लगाए जाएं, जिन पर मरीजों के अधिकार और शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से लिखी हो।
  5. मनोवैज्ञानिक सहायता की सुविधा – डॉक्टरों के अनुचित व्यवहार से शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक पीड़ा होती है। अस्पतालों में एक मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता की सुविधा होनी चाहिए जो मरीजों और उनके परिवारों को मानसिक रूप से समर्थन दे सके।
  6. डॉक्टरों के लिए व्यवहार प्रशिक्षण अनिवार्य हो – मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में डॉक्टरों को मरीजों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और संवेदनशील व्यवहार करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। डॉक्टरों को यह समझाने की जरूरत है कि उनका व्यवहार मरीजों के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालता है।
  7. सख्त दंड का प्रावधान – डॉक्टरों द्वारा दुर्व्यवहार की शिकायतों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। बार-बार शिकायत मिलने पर संबंधित डॉक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसमें सेवा निलंबन तक का प्रावधान होना चाहिए।