हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश का हमीरपुर जिला सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि वीरता, बलिदान और देशभक्ति की मिसाल है। यह वह भूमि है, जहां हर पांचवें घर से एक बेटा भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा करता है। यहां के 367 वीर सपूतों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन दुख की बात यह है कि इन बलिदानियों की याद में कोई भव्य स्मारक अब तक नहीं बन सका।
सरकारें आती-जाती रहीं, घोषणाएं भी हुईं, लेकिन आज भी शहीदों की यादों को एक जगह सहेजने वाला वार मेमोरियल (War Memorial) अधूरा पड़ा है।
सरकारी घोषणाओं में उलझा शहीद स्मारक
हमीरपुर के पक्का भरो के पास शहीद स्मारक बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में इसे वार्ड नंबर-2 के शहीद मृदुल पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया। 26 जुलाई 2022 को तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस जगह को वार मेमोरियल बनाने की घोषणा की और 70 लाख रुपये के बजट को मंजूरी दी।
उस समय कहा गया था कि सरकार के पास 67 करोड़ रुपये का एक प्रस्ताव आया है, लेकिन तत्कालीन सरकार ने 70 लाख रुपये देने की बात कही। पीडब्ल्यूडी को इसके निर्माण की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन अब तक केवल शहीद कैप्टन मृदुल की प्रतिमा और कुछ अधूरी सीढ़ियां ही नजर आती हैं।
20 लाख रुपये खर्च होने की बात कही जा रही है, लेकिन हकीकत में अब भी यह स्मारक अधूरा पड़ा है।
शहीदों की यादों के लिए वार मेमोरियल क्यों जरूरी?
- हमीरपुर ने 367 वीर सपूतों को खोया है, जिन्होंने 1962 के चीन युद्ध से लेकर आज तक हर लड़ाई में भाग लिया।
- यहां के कई परिवारों ने अपने बेटे, भाई और पति को खो दिया, लेकिन उनकी स्मृतियां संजोने के लिए कोई स्थायी स्मारक नहीं बना।
- शहीदों की प्रतिमाओं पर चढ़ाए गए फूल सूख चुके हैं, जो इस अधूरे स्मारक की कहानी खुद बयान कर रहे हैं।
- यह स्मारक आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और देश की रक्षा के लिए दिए गए बलिदानों को याद रखेगा।
स्थानीय नेताओं और संगठनों की नाराजगी
हमीरपुर के विधायक आशीष शर्मा ने कहा,
“हमीरपुर वीरभूमि कहलाती है, और यहां वार मेमोरियल बनना बहुत जरूरी है। अगर बजट के अभाव में इसका काम रुका है, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने मुख्यमंत्री से इस बारे में बात की है और जल्द ही इस मामले को उठाऊंगा।”
वहीं, प्रदेश स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी कल्याण संघ के पुरुषोत्तम कालिया ने कहा,
“2022 में वार मेमोरियल की घोषणा की गई थी, लेकिन अब इसके लिए बजट नहीं होना अफसोस की बात है। सरकार को इस स्मारक को जल्द पूरा करने के लिए कदम उठाने चाहिए।”
दुधला गांव: जहां हर घर से एक फौजी
हमीरपुर जिला हमेशा से वीरता की मिसाल रहा है, लेकिन टौणीदेवी क्षेत्र के बजरोल पंचायत के दुधला गांव की कहानी अनोखी है।
- इस गांव के हर घर से एक व्यक्ति सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहा है।
- करीब तीन दर्जन घरों वाले इस गांव में हर परिवार ने भारतीय सेना को अपना बेटा सौंपा है।
हमीरपुर: बलिदानों की धरती
- हमीरपुर के वीरों ने 1962 के भारत-चीन युद्ध से लेकर आज तक हर बड़े युद्ध में भाग लिया।
- करगिल युद्ध, 1971 का भारत-पाक युद्ध, सियाचिन संघर्ष से लेकर आतंकवाद विरोधी अभियानों तक यहां के सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
सरकार कब उठाएगी ठोस कदम?
हमीरपुर के लोगों और शहीदों के परिवारों की यह मांग जायज है कि जल्द से जल्द इस वार मेमोरियल को पूरा किया जाए। सरकारें भले ही घोषणाएं करती रही हों, लेकिन जब तक यह स्मारक पूरा नहीं होता, तब तक हमीरपुर के बलिदानियों के साथ अन्याय होगा।
क्या अब भी हमीरपुर के इन वीरों की कुर्बानी को केवल कुछ मौकों पर याद किया जाएगा, या फिर सरकारें अपने वादों को निभाएंगी?