संस्कार के बीज,कामयाबी के फल – समीर गुप्ता

                            लघु कथा

शहर की चकाचौंध से दूर सिमर प्रताप अपने परिवार के साथ एक आनंदित जीवन जी रहा था। परिवार में दादा-दादी, माता-पिता , चाचा-चाची  के आलावा चार भाई-बहन थे । सिमर के पिता फौज में राइफल मैन थे । उसे अपने पिता के आर्मी में राइफलमैन होने पर बहुत गर्व था। दादा और चाचा  गांव में खेती का काम किया करते थे,  पूरा परिवार मेहनत और ईमानदारी से जीवन जीने मे यकीन रखता था । परिवार के बच्चों में भी बेहतरीन संस्कार उजागर हो रहे थे सिमर अपने भाई और दो बहनों के साथ दिन में स्कूल जाया करता और शाम को पढ़ने के बाद गांव के बच्चों के साथ खेला करता ।  जब कभी रविवार या कोई और अवकाश होता तो कभी-कभार वह भी खेतों में जाकर अपने दादा और चाचा का हाथ बंटाता । गर्मियों की छुट्टियों में परिवार के सभी बच्चे सिमर के पिता के पास रहने जाते थे, उन्हें आर्मी कैंट में रहना बहुत अच्छा लगता था । सिमर के पिता को दो कमरों का क्वार्टर मिला हुआ था । सिमर की मां साल में तीन-चार महीने पिता के साथ पोस्टिंग स्टेशन पर रहती थी । सिमर का जीवन बहुत खुशी से बीत रहा था । समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था सिमर नौवीं कक्षा में हो चुका था और बाहरी दुनिया की चकाचौंध अब उसे आकर्षित करने लगी थी। सेना में औहदे के महत्व को वह गम्भीरता से समझ रहा था। मन में उसे अपने पिता का छोटे रैंक का होना बेहद खलता। अब जबकभी सिमर अपने पिता के पास रहने जाता तो उसे वहां रहना अच्छा नहीं लगता था । जब वह अपने पिता को युवा कमीशनड आफिसर्स को सैल्यूट करते हुए देखता तो उसे यह दृश्य बहुत अखरता था । अब वो किसी को भी अपने पिता के राइफल मैन बताने से गुरेज करने लगा । अब सिमर  अपने पिता से पूछता  कि वे कमीशनड अफसर क्यों नहीं बने तो पिता मुस्करा कर उसकी बात टाल देते । एक दिन सिमर ने पिता से पूछा कि  आर्मी अफसर बनने के लिए कौन सा एग्जाम देना होता है ? तो पिता ने बताया कि एनडीए और सीडीएसई परीक्षा पास करके अफसर बना जा सकता है । सिमर ने एनडीए के लिए तैयारी शुरू की वह दिन में सात-आठ धंटे पढ़ाई करने लगा परन्तु उसे कामयाबी नहीं मिली। सेना में जाने की उसने ठान रखी थी तो उसने अपने पिता की तरह ही सिपाही के तौर पर आर्मी में प्रवेश का मन बना लिया । जिसमें वह सफल भी हो गया ।

 एक सिपाही का जीवन कितना संघर्ष भरा होता है, सरहद पर या देश के भीतर किसी आपदा के समय देश का फौजी सबसे आगे खड़ा होता है यह अब उसे यह महसूस हो रहा था । उसकी पोस्टिंग लेह में हुई वहां पर तापमान शून्य के आसपास था। बेहद सर्दी में ड्यूटी के दौरान शरीर ठिटुरता,अकड़ता, सुन्न होकर निर्जीव सा महसूस होने लगता । पैरों में छाले पड़ने लगे थे । अब सिमर को अपने पिता की जीवन यात्रा याद आने लगी उनकी पीड़ा को वह स्वयं महसूस कर रहा था । पिता ने अपनी जिदंगी के 25 साल देश की सेवा मे अर्पित किए। उसके पिता ने अपने कष्ट के बारे में कभी भी किसी से कोई बात तक नही की। 

समाज में बड़े औहदे के दिखावे का अभिमान अब स्वाभिमान में बदल चुका था। पिता भी सेवानिवृत्त हो चुके थे । सिमर को अपनी पहली छुट्टी का बेसब्री से इंतजार था जोकि छ: माह उपरांत मंजूर हुई । सिमर गांव सबसे मिला और फिर पिता के चरणों मे बैठ गया और धीरे-धीरे उनके पांव दबाने लगा। पिता के पांव और दिल के जख्म वह महसूस कर रहा था । पिता के पांव के छालों ने सिमर को एक नया जीवन दिया और उसने मन ही मन में पिता को नमन किया । पिता उसके लिए आज नींव के पत्थर का काम कर रहे थे। सिमर ने सात साल की कड़ी मेहनत व राष्ट्र सेवा के बाद नेशनल कैडेट कॉलेज में प्रवेश पाया और आज वो लेफ्टिनेंट सिमर प्रताप है । 

स्मरण रहे बुजुर्गों द्वारा बचपन में दिए गए संस्कार जीवन की लंबी यात्रा की आधार होते हैं ।

– समीर गुप्ता,पठानकोट.