लाखों की मशीनें तालों में बंद,हाथों से ऊन उतारने को मजबूर भेड़पालक !

रोजाना24,चम्बा : भेड़ बकरी पालन में कभी एशिया भर में अग्रणी रहे भरमौर क्षेत्र के भेड़ पालक इन दिनों ठगा सा महसूस कर रहे हैं.क्षेत्र में हजारों भेड़ों से ऊन उतारने का कार्य किया जाना है लेकिन वूल फैडरेशन की ओर से ऊन उतारने की मात्र एक मशीन भरमाणी में स्थापित की है जिस पर करीब तीन हजार भेड़ों की उतारने का बोझ है.चूंकि क्षेत्र में अब ठंड बढ़ने लगी है जिस कारण भेड़ पालक जल्द से जल्द भेड़ों की ऊन उतारकर निचले गर्म भूभागों की ओर पलायन करना चाहते हैं लेकिन बिना ऊन उतारे यहां से जा भी नहीं सकते.

क्षेत्र के भेड पालक विजय कुमार,दिलबर सिंह,भेड़ पालक संघ के पूर्व प्रधान दलेर सिंह,पवन कुमार,नेक राम आदि बताते हैं कि भेड़ पालन व्यवसाय सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.भरमौर के होली,चन्हौता, चोबिया,भरमाणी,बड़ग्रां,तुंदाह,गरीमा,पालन आदि  धारों पर दर्जनों भेड़पालकों की हजारों भेड़ों से ऊन उतारी जानी है.उन्होंने कहा कि वूल फेडरेशन ने भेड़ों से ऊन उतारने के लिए मशीनों की व्यवस्था कर अच्छा कार्य किया था.लेकिन इस वर्ष यह सुविधा एक मशीन तक सीमित हो गई है.एक मशीन पर तीन हजार भेड़ों की ऊन उतारने में हफ्तों का समय लग जायेगा.जबकि क्षेत्र में हिमपात का सीजन भी शुरू होने वाला है.फेडरेशन द्वारा उपलब्ध करवाई गई मशीनें काफी कारगर साबित हुईं थी.भेड़ पालक पिछले एक दशक से इन मशीनों पर इस कदर आश्रित हो गए हैं कि उन्होंने हाथों से ऊन उतरवाना बंद कर दिया है.जिस कारण हाथों द्वारा भेड़ों से ऊन उतारने का कार्य करने वाले लोगों ने भी यह काम छोड़ दिया है.अब हालात यह हैं कि न तो वूल फेडरेशन की मशीन मिल रही है व न ही हाथों से ऊन उतारने वाले कारीगर (मुनार).इस परिस्थिति में भेड़पालक स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.भेड़ पालकों का कहना है कि हाथों से ऊन उतारने वाले ‘मुनारों’ ने अन्य व्यवसाय अपना लिए हैं.ऐसे में एक तो उनकी उपलब्धता बहुत कम है वहीं उनसे ऊन उतरवाने का कार्य धीमा व बेहद खर्चीला है.हाथों से ऊन उतारने के दौरान भेड़ें घायल भी हो जाती हैं.

यहां बताना आवश्यक है कि वूल फेडरेशन व भेड़ विकास विभाग ने दर्जनों युवाओं को मशीनों के माध्यम से भेड़ों की ऊन उतारने का प्रशिक्षण दिया है.जिन्हें फेडरेशन द्वारा 08 से 10 रुपये प्रति भेड़ कमीशन दिया जाता है.लेकिन प्रशिक्षण प्राप्त यह लोग अब सरकार से मांग कर रहे हैं कि जब तक उन्हें नौकरी नहीं मिलती या कोई स्थायी योजना तैयार नहीं करती तब तक वे काम नहीं करेंगे.उनकी इस अड़चन ने भेड़पालकों की समस्या को बढ़ा दिया है.

गैरतलब है कि ऊन उतारने के लिए प्रशिक्षित युवाओं ने सरकार के समक्ष अपनी मांग मनवाने के लिए मजबूर भेड़ पालकों का समर्थन भी लिया था.लेकिन इस सब के बावजूद उनकी समस्या हल नहीं हो रही.कुछ भेड़पालकों ने हाथों से ऊन उतारने वालों को ढूंढ कर काम शुरू कर दिया है तो कुछ अभी भी सरकार की एक सहायता की टकटकी लगाए हुए हैं.

उधर इस बारे में पूल फेडरेशन के मैंनेजिंग डायरेक्टर ने कहा कि कल 10 अक्तूबर से मशीनें व कारीगर पूर्ववत तरीके से ऊन उतारने के लिए निर्धारित स्थानों पर पहुंच जाएंगे.