हिमाचल की जेलों में नशा तस्करों की भरमार, क्षमता से अधिक कैदी बनी चुनौती

हिमाचल की जेलों में नशा तस्करों की भरमार, क्षमता से अधिक कैदी बनी चुनौती

शिमला: हिमाचल प्रदेश की जेलों में नशा तस्करी के मामलों में बंद कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राज्य की 14 जेलें पहले ही अपनी निर्धारित क्षमता से अधिक कैदियों को समायोजित कर चुकी हैं। सबसे बड़ी चिंता एनडीपीएस एक्ट (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के तहत बंद कैदियों की संख्या है, जो अब 1353 तक पहुंच चुकी है, जिनमें 1296 पुरुष और 57 महिलाएं शामिल हैं।

जेलों में क्षमता से अधिक कैदी

वर्तमान में प्रदेश की जेलों की कुल क्षमता 2580 कैदियों की है, लेकिन 3136 कैदी इनमें पहले से ही बंद हैं। इनमें 3015 पुरुष और 121 महिलाएं हैं। इसका मतलब है कि 550 से अधिक कैदी अतिरिक्त रूप से जेलों में रखे जा रहे हैं, जिससे जेल प्रबंधन पर भारी दबाव बना हुआ है।

एनडीपीएस केसों की भयावह स्थिति

एनडीपीएस एक्ट के तहत बंद कैदियों में से 1020 अंडर ट्रायल हैं, जिनमें 974 पुरुष और 46 महिलाएं हैं। वहीं, कुल 1353 कैदी इस कानून के तहत जेलों में बंद हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि नशा तस्करी के मामलों में पुलिस की कार्रवाई जितनी तेज हुई है, उतना ही जेलों का बोझ भी बढ़ा है।

कौन-कौन सी जेलें सबसे ज्यादा प्रभावित

  • कंडा जेल में 102 पुरुष और 3 महिलाएं एनडीपीएस केस में बंद हैं।
  • नाहन जेल में 101 पुरुष और 3 महिलाएं इसी श्रेणी में आती हैं।
  • चंबा जेल में 33 पुरुष और 1 महिला एनडीपीएस कैदी हैं।
  • अन्य जेलों में भी ऐसी ही स्थिति है – बिलासपुर, धर्मशाला, मंडी, नूरपुर, सोलन, ऊना, नालागढ़ और कल्पा की जेलों में एनडीपीएस मामलों के कैदी तेजी से बढ़ रहे हैं।

ओवरलोड जेलों में सबसे अधिक दबाव

कांगड़ा, मंडी, बिलासपुर, चंबा, कुल्लू, सोलन जैसी जेलें पहले से ही भर चुकी हैं। ओपन जेल और सब जेलों में भी अब नई गिरफ्तारी के लिए जगह की कमी होती जा रही है। न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति और अधिक संख्या में अंडर ट्रायल कैदियों के कारण जेलों में दबाव और बढ़ गया है।

कैदियों के जीवन में सुधार के प्रयास

हालांकि सरकार की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है कि जेलों में बंद कैदियों को रोजगार के छोटे-छोटे साधन उपलब्ध कराए जाएं ताकि वे समाज की मुख्यधारा में दोबारा लौट सकें। मगर जब जेलें ही अपनी क्षमता से दोगुनी हो जाएं, तो सुधार कार्यों के प्रभावी क्रियान्वयन में भी बाधाएं उत्पन्न होती हैं।

समस्या कितनी गंभीर है?

  • 2025 में अब तक दर्ज एनडीपीएस केसों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी।
  • न्यायालयों में लंबित मामलों के कारण कैदी लंबे समय तक अंडर ट्रायल रहते हैं।
  • जेल प्रशासन को स्वास्थ्य, सुरक्षा और पुनर्वास जैसी बुनियादी सेवाएं देने में कठिनाई हो रही है।

निष्कर्ष के बिना

हिमाचल प्रदेश में बढ़ते नशा तस्करी के मामलों के साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति ने जेलों पर दबाव कई गुना बढ़ा दिया है। अब यह जरूरी हो गया है कि जेलों की क्षमता बढ़ाई जाए, अंडर ट्रायल मामलों में तेजी लाई जाए, और कैदियों के पुनर्वास कार्यक्रमों को और मजबूत किया जाए।