कांगड़ा जिला, हिमाचल प्रदेश की धरती आज से 120 साल पहले, 4 अप्रैल 1905 को, एक भयानक त्रासदी का साक्षी बनी थी। वह सुबह 6:19 पर, जब लोग अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त थे, एक विनाशकारी भूकंप ने इस क्षेत्र को हिला कर रख दिया। रिएक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता वाले इस भूकंप ने महज दो मिनट में ही भारी तबाही मचा दी।
हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन द्वारा शेयर की गई दुर्लभ तस्वीरों से इस भूकंप की विभीषिका का अनुमान लगाया जा सकता है। इस आपदा में करीब 20,000 लोगों की जान गई, 53,000 पशु मारे गए और लगभग एक लाख घर ढह गए। कांगड़ा, मैकलोडगंज और धर्मशाला के अधिकांश भवन नष्ट हो गए थे।
इस भूकंप से प्रसिद्ध ब्रजेश्वरी मंदिर और कांगड़ा किला भी गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे। मंदिर का गुंबद गिर गया था, और किले की दीवारें ढह गई थीं, जिससे आज भी कई मंदिर जर्जर स्थिति में हैं।
इस भूकंप के प्रभावों की भरपाई में 2.9 मिलियन (1905 में) रुपये का खर्च आया था। विभिन्न क्षेत्रों में हुई विनाशकारी क्षति के आंकड़े इस प्रकार हैं: छड़ी गाँव में 150 लोगों की मौत, गुरखा बैरक्स में 136 लोगों की मौत, धर्मशाला से 5 मील दूर घरो गाँव में 200 लोगों की मौत, मैकलोडगंज में पूर्ण विनाश में लगभग 900 लोगों की मौत, माता ब्रजेश्वरी मंदिर में 2000 से अधिक लोगों की मौत, और धर्मशाला के कोटवाली बाजार क्षेत्र में लगभग 1000 लोगों की मौत।
इस त्रासदी को याद करते हुए, हमें आपदा प्रबंधन और तैयारी की महत्वपूर्णता की नसीहत मिलती है, ताकि भविष्य में इस तरह की आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने मानव समाज कितना असहाय हो सकता है, और इसलिए हमें न केवल तैयार रहने की जरूरत है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।