देश को स्वच्छ व सुंदर बनाने के लिए सरकारें स्वच्छता अभियानों पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं लेकिन जमीनी हकीकत पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि यह अभियान मात्र दिखावे के लिए ही चलाए जाते हैं.जबकि हकीकत यह है कि सफाई मात्र उन्हीं सीमित जगहों की जाती है जहां पर सामान्य लोगों बड़े अधिकारियों व नेताओं की नजर पहुंचती है.जबकि बाकि सब जगह की सफाई तो विशेष अभियान चलाकर ही करनी पड़ती है. भरमाणी माता मंदिर परिसर भी उन्हीं जगहों में से एक है जहां सफाई तभी होती है जब गंदगी की खबर मीडिया में आती है.बीते मणिमहेश यात्रा के बाद से किसी ने भी इस महत्व पूर्ण स्थल की सफाई नहीं की है.जिस कारण यहां चारों ओर कचरे व गंदगी ढेर लगे हैं.अब लोग पूछनेे लगे हैं कि आखिर सरकार साफ सफाई के नाम पर किए गए खर्च का हिसाब क्यों नहीं मांगती ?
गौरतलब है कि भरमाणी माता मंदिर पेय जल स्रोत से भरमौर की पांच पंचायतों के लोगों की प्यास बुझाता है.वहीं इस मंदिर में हर रोज श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है.तो हर रविवार को श्रद्धालुओं के अलावा क्षेत्र के लोग मानसिक तनाव दूर करने के लिए यहां पिकनिक के लिए भी पहुंचते हैं.ऐसे में बहुत से लोग यहां पैक खाना व शराब का सेवन कर खाली बोतलें खुले व पानी के श्रोत में फेंक जाते हैं.जिससे यहां प्राकृतिक सौंदर्य तो खराब होता ही है.पेयजल स्रोत भी दूषित होता है.
विडम्बना यह है कि इतने महत्वपूर्ण स्थल की साफ सफाई पर कोई ध्यान नहीं देता.जबकि यह क्षेत्र साडा के मणिमहेश न्यास के अंतर्गत भी आता है.प्रशासन इस मंदिर से हर वर्ष लाखों रुपये चढ़ाने के रूप में तो प्राप्त करता लेकिन साफ सफाई पर कोई काम नहीं करता.रोचक तो यह भी है कि साडा के तहत आने वाले क्षेत्र में पक्के रास्तों,बिजली,स्वच्छ पेय,व साफ सफाई व्यवस्था पर ही ज्यादा काम किया जाता है.
इस संदर्भ में प्रशासन की ओर से तो कोई जबाव नहीं मिला लेकिन स्थानीय पंचायत प्रधान अंजना देवी ने कहा कि पहले पंचायत को साडा के अंतर्गत धनराशि मिलती थी लेकिन अब न तो न्यास की ओर से चढ़ावे की राशी में पंचायत को कोई धन राशी मिलती है व न ही पंचायत के पास आय का कोई अतिरिक्त साधन है.इसके बावजूद पंचायत अपने स्तर आवश्यक स्थलों पर सफाई करवाती है.जिसमें गांव व उसके पास के प्राकृतिक पेय जल स्रोत शामिल हैं.उन्होंने कहा कि वे इस बारे जिलाधीश चम्बा को अवगत करवाएंगी.