रोजाना24 : बर्फ गिरते हुए देखना व उसे महसूस करने की अभिलाषा भला किसके मन में नहीं होती.रूई सी मुलायम,आसमान में तैरते बर्फ के शीतल फाहे जब ऊपर उठे चेहरे पर गिरते हैं.तो शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाती है.बर्फ की मोटी परत पर पैर रखना उसका धंसना दूसरे पैर के उठते ही पहले का खिसकना यह रोमांचकारी एहसास कभी न भूलने वाला अनुभव होता है.
सोचता हूं शायद ऐसा ही एहसास उन लोगों को भी होता होगा जो उन पहाडों पर रहते हैं जहां बर्फ गिरती है.बहुत ही खुशनसीब होंगे वे लोग जो बर्फ ढके उन पहाड़ों की आगोश में रहते हैं.चिलचिलाती धूप व प्रदूषण मुक्त साफ हवा,शीतल स्वच्छ पानी कितना आनन्दमयी जीवन होगा उनका.
पहाड़ की इस शीतल सफेद चादर के आश्रय का अनुभव लेने के लिए पहाड़ सी ही हिम्मत भी चाहिए.जो बर्फ सैलानियों को आकर्षित कर उन्हें आनन्द प्रदान करती है वही बर्फ यहां रहने वाले लोगों के लिए आफत बन जाती है.पतझड़ के साथ ही वातावरण से गायब नमी के कारण हाथ,पैर,होंठ व गाल फटने लगते हैं.नवम्बर या दिसम्बर माह में बर्फ गिरने से पूर्व अगले चार या पांच माह के जीवन यापन की व्यवस्था करना मजबूरी है राशन,पशुओं का चारा,इंधन की लकड़ी,कोयला आदि सब एकत्रित करना पड़ेगा भले ही उसके लिए पैसे हों या न हों.बर्फ गिरने के बाद मवेशियों को आंगन के बाहर जाने की इजाजत नहीं तो लोगों का गांव से बाहर.शुन्य से नीचे तापमान,हिमपात के कारण बिजली व सड़क मार्ग बंद हों और कोई बीमार पड़ जाए तो खूबसूरत दिखने वाली यह बर्फ साक्षात यमराज लगने लगती है.अस्पताल से मीलों दूर गांव से उबड़-खाबड़ रास्ते पर बिछी फिसलन भरी बर्फ की मोटी तह पर मरीज को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाने का अनुभव शब्दों में तो ब्यान नहीं किया जा सकता.
बर्फ भरे क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ रहे स्कूली बच्चों को बर्फीली ठंड से अकड़े हुए हाथों से लिखने,बर्फीले पानी में रोज कपड़े धोती गृहणियों,परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने निकले मजदूरों के हौसले गिराने के लिए यह ठंडी आफत बूरा प्रयास करती है.पहाड़ों से टूटते हिमखंड दिल दहलाने के लिए काफी हैं लेकिन इन पहाड़ वालों को बर्फ को कोसतेे कभी नहीं देखा .