मिट्टी,रोगन,कीचड़,सींमेंट,ग्रीस आदि से सने चीथड़ों में न जाने कितने लोग दिनभर में आंखों के सामने से गुजर जाते हैं.शाम तक हमें उनका चेहरा तो क्या हुलिया तक याद नहीं रहता.
कार्यालय के लिए निकला तो गाड़ी के कड़कड़ाते शोर ने याद दिलाया कि घर बनाने की चिंता में गाड़ी का सर्विस करवाना ही भूल गया हूं.हालात को भांपते हुए गाड़ी को सर्विस स्टेशन ले जाने के बजाए में स्थानीय मकैनिक के पास ले जाकर सबकुछ ठीक करने का आदेश दे डाला.मुरम्मत के बाद ग्रीस में लथपथ मकैनिक ने गाड़ी को स्टार्ट किया तो चेहरे पर मुस्कान आ गई.दूसरे ही पल यह मुस्कान तब गायब हो गई जब उसने गाड़ी मुरम्मत के सौ रुपए मांगे.तब मन में टीवी पर चलने वाला सरकारी विज्ञापन याद आ गया ‘जागो ग्राहक जागो’ और मेरे अंदर का ग्राहक एकदम जागरूक हो गया.फिर इधर उधर की पहुंच की धौंस जमाते हुए उसे सत्तर रुपये देकर निकला तो कुछ राहत महसूस हुई.पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर नये घर के गेट पर पहुंचा तो घर के पेंट का कार्य लगभग पूरा हो चुका था.रंग बिरंगे रोगन के धब्बों वाला चेहरा मेरे सामने आया और बोला साहब ! पेंट का बाकी काम कल सुबह खत्म कर देंगे.इसलिए हिसाब किताब भी कल ही करेंगे.पेंटर द्वारा आज पैसे न मांगने पर थोड़ा सकून तो मिला लेकिन फिर सोचा कि काम में कुछ मीन मेख तो निकालनी ही पड़ेगी नहीं तो पूरे पैसे देने पड़ेंगे.अभी सोच विचार में घर की ओर बढ़ा ही था कि खलिहान में निकासी नालियां बना रहा मजदूर दौड़ा दौड़ा आया और हांफते हुए बोला साहब मैं कल भी आपको घर पर ढूंढ आया था लेकिन आप मिले नहीं.मैंने मन ही मन में अनुमान लगाया कि नालियों का काम तो कल का समाप्त हो चुका है इसलिए इसका हिसाब किताब भी चुकता करना पड़ेगा.मेरी उधेड़ बुन की तंद्रा को तोड़ते हुए उसने कहा साहब ! इस बार आम की फसल अच्छी हुई है तो मैंने सोचा आपको पैसों की जरूरत होगी यह कहते हुए उसने मेरे हाथ पर सौ सौ के नोटों की गड्डी मेरे हाथ में थमा कर निकल गया.अब मेरे मन में नया विचार आया कि इन पैसों से मैं कल गृहनिर्माण के बैंक ऋण की किस्त भर आऊंगा.
मेरे मन में एक बार भी यह विचार नहीं आया कि मेरे घर को संवारते संवारते इन लोगों ने तो अपनी पहचान तक खो दी है.