कांगड़ा जिला प्रशासन ने वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act – FCA) और अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकार मान्यता अधिनियम – FRA) के तहत विकास परियोजनाओं से संबंधित लंबित स्वीकृति मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए सख्त तेवर अपनाए हैं।
उपायुक्त हेमराज बैरवा ने वीरवार को जिला स्तरीय समन्वय समिति की बैठक में साफ निर्देश दिए कि वन स्वीकृति से संबंधित समस्त बाधाओं को दूर कर मंजूरियों की प्रक्रिया को प्राथमिकता पर पूर्ण किया जाए, ताकि ज़मीनी स्तर पर विकास कार्यों को गति मिल सके।
🔎 बैठक का फोकस: लंबित मामलों का विश्लेषण और प्रक्रिया की स्पष्टता
बैठक में उपायुक्त ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों से एफसीए और एफआरए मामलों की प्रगति रिपोर्ट तलब की और यह जानना चाहा कि
- स्वीकृतियों में देरी के क्या कारण हैं?
- आपत्तियां किस स्तर पर आ रही हैं?
- और विभागों ने अब तक क्या कदम उठाए हैं?
उपायुक्त बैरवा ने स्पष्ट किया कि कई बार स्वीकृति के लिए भेजे गए प्रकरण प्रक्रियागत जानकारी के अभाव में अधूरे रह जाते हैं, जिससे अनावश्यक विलंब होता है। उन्होंने कहा कि
“विभागों को एफसीए/एफआरए मामलों की फाइलें तैयार करने की पूरी समझ होनी चाहिए। अधूरे दस्तावेजों के चलते महीनों फाइलें अटकी रहती हैं और प्रोजेक्ट्स प्रभावित होते हैं।”
📊 वन मंडलों में मामलों की स्थिति
डीएफओ मुख्यालय राहुल कुमार ने बैठक में विभिन्न वन मंडलों से संबंधित मामलों की जानकारी साझा की।
- धर्मशाला वन मंडल: 32 मामले
- नूरपुर: 21 मामले
- पालमपुर: 12 मामले
- देहरा: 13 मामले
इसके अतिरिक्त, नए प्रकरणों पर भी विचार-विमर्श किया गया।
🤝 समन्वय और सहयोग की आवश्यकता
बैठक में लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति विभाग, शिक्षा, उद्योग, पुलिस सहित विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
उपायुक्त ने दोहराया कि विभागीय समन्वय, समयबद्धता, और दस्तावेजों की पूर्णता — ये तीनों कारक मंजूरी प्रक्रिया को तेज करने की कुंजी हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि जिला प्रशासन वन भूमि और गैर-वन भूमि की सटीक पहचान में विभागों की पूरी सहायता करेगा, ताकि विवाद की स्थिति उत्पन्न न हो और फाइलें सटीक रूप से आगे बढ़ सकें।
📝 विभागीय क्षमताओं का सुदृढ़ीकरण जरूरी
उपायुक्त बैरवा ने सुझाव दिया कि संबंधित विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों को एफसीए/एफआरए मामलों की प्रक्रिया पर प्रशिक्षण भी दिया जाए ताकि कोई भी फाइल अधूरी न रहे और समय पर परियोजनाओं को स्वीकृति मिल सके। उन्होंने कहा कि
“विकास केवल योजना बनाकर नहीं होता, उसे ज़मीन पर लाने के लिए प्रशासनिक दक्षता और तकनीकी पारदर्शिता जरूरी है।”
🚧 क्यों जरूरी है यह निर्देश?
कांगड़ा जिला में सड़कों, पेयजल योजनाओं, स्कूल भवनों, स्वास्थ्य संस्थानों और अन्य अधोसंरचना से जुड़ी कई अहम परियोजनाएं सिर्फ इसलिए रुकी पड़ी हैं क्योंकि वन भूमि से जुड़ी स्वीकृतियां समय पर नहीं मिल पा रही हैं।
ऐसे में प्रशासन का यह कदम नीतिगत इच्छाशक्ति और कार्यान्वयन के बीच की दूरी को पाटने की दिशा में एक ठोस प्रयास माना जा रहा है।
वन स्वीकृति प्रक्रिया को लेकर जिला प्रशासन की संजीदगी एक सकारात्मक संकेत है, जिससे न केवल निर्माण गतिविधियों को बल मिलेगा बल्कि प्रशासनिक कार्य संस्कृति में भी उत्तरदायित्व की भावना प्रबल होगी।