धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में 11 नए ईको-पर्यटन स्थलों के विकास की योजना तैयार की गई है। इस पहल से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। सरकार का लक्ष्य है कि पर्यटन के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सीधे लाभान्वित किया जाए।
ग्रामीण युवाओं को मिलेगा रोजगार और स्वरोजगार का अवसर
ईको-पर्यटन स्थलों के विकास से सबसे बड़ा लाभ स्थानीय युवाओं को मिलेगा। गाइडिंग, ट्रैकिंग, कैम्पिंग, होमस्टे, कैफे, हस्तशिल्प बिक्री जैसी गतिविधियों में ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे। सरकार का इरादा इन स्थलों को आउटसोर्सिंग के जरिये विकसित और संचालित करना है, जिससे स्थानीय निवासियों को सीधे प्रबंधन और सेवा क्षेत्रों में भागीदारी का अवसर मिलेगा।
स्थानीय उत्पादों और सेवाओं की मांग में होगी बढ़ोतरी
ईको-पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की आमद बढ़ने से स्थानीय कृषि उत्पादों, हस्तशिल्प, और पारंपरिक खानपान की मांग भी बढ़ेगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। पारंपरिक लोककला, वेशभूषा और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों को भी नया मंच मिलेगा, जिससे ग्रामीण संस्कृति का संरक्षण होगा और आर्थिक सशक्तिकरण भी सुनिश्चित होगा।
स्थानीय बुनियादी ढांचे में होगा सुधार
ईको-पर्यटन के विकास के साथ-साथ, सड़कों, स्वास्थ्य सेवाओं, संचार सुविधाओं और स्वच्छता जैसे बुनियादी ढांचे में भी सुधार की आवश्यकता और मांग बढ़ेगी। इससे ग्रामीण इलाकों में जीवन स्तर बेहतर होगा और समग्र विकास को गति मिलेगी। सरकार द्वारा चिह्नित ईको-पर्यटन स्थलों में सौरभ वन विहार, न्यूगल पार्क, बीड़-बिलिंग जैसे प्रसिद्ध स्थल शामिल हैं, जिनका विकास मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।