आठ साल का लंबा इंतजार, 24 करोड़ रुपये का खर्च, और अब भी भरमौर के लोगों को वह अस्पताल नहीं मिला जिसकी उन्हें दरकार थी। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र भरमौर में प्रस्तावित प्रीफैब्रिकेटेड अस्पताल न केवल वर्षों की देरी से जूझता रहा, बल्कि अब जब निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, तो सामने आ रहा है कि यह अस्पताल न तो तय मानकों के अनुसार बना है और न ही इसमें वो बुनियादी सुविधाएं हैं जो एक सिविल अस्पताल में होनी चाहिए।
क्या 24 करोड़ ऐसे ही बर्बाद हो गए?
वर्ष 2016/2017 में जिस अस्पताल का टेंडर जारी हुआ था, उसका उद्देश्य था कि भरमौर जैसे दूरस्थ क्षेत्र में लोगों को तुरंत और प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। प्रीफैब्रिकेटेड तकनीक को इसलिए चुना गया था कि अस्पताल जल्दी बने और लोगों को राहत मिले। लेकिन 2025 में भी यह अस्पताल शुरू नहीं हुआ है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अब जो ढांचा सामने आया है, वह अस्पताल के मानकों पर खरा ही नहीं उतरता। स्थानीय लोगों और अस्पताल से जुड़े सूत्रों के अनुसार, भवन की प्लानिंग में गंभीर खामियां हैं, जरूरी विभागों की जगह नहीं है, और जो कमियां हैं, उन्हें सुधारने का कोई प्रयास भी नहीं किया जा रहा।
कहां है जांच एजेंसियां? कौन करेगा इस निर्माण में हुई संभावित गड़बड़ियों की जांच?
लोग सवाल कर रहे हैं कि 24 करोड़ रुपये की इस परियोजना में अगर निर्माण मानकों के अनुरूप नहीं हुआ, तो क्या यह एक संभावित घोटाला नहीं है? और अगर है, तो इसकी जांच क्यों नहीं हो रही?
कोई एजेंसी, कोई जांच अधिकारी, कोई सरकार का प्रतिनिधि – कोई भी इस बात का जवाब नहीं दे रहा कि आखिर भरमौर को ऐसा अधूरा और असमर्थ अस्पताल क्यों दिया जा रहा है।
पुराना अस्पताल बना मज़ाक – सिर्फ 2 डॉक्टर और 3 ही नर्सें, सुविधाएं नगण्य
भरमौर में फिलहाल जो पुराना अस्पताल संचालित हो रहा है, उसे सिविल अस्पताल कहना भी कठिन है। यहां सिर्फ दो डॉक्टर बचे हैं, और बाकी सुविधाओं की हालत बेहद दयनीय है। इस अस्पताल की दयनीय स्थिति को देखकर ही नया अस्पताल बनाया जा रहा था लेकिन अब उसका क्या होगा कोई नहीं जानता लेकिन पुराने अस्पताल में डॉक्टरों की कमी ने भरमौर की स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह से झकझोर के रख दिया है ।
लगभग 20000 लोगों को सेवाएं देने वाले इस अस्पताल में सिर्फ 2 डॉक्टर लेकिन फिर भी प्रशासन आँखें मूँद के बैठा है। इस अस्पताल की यह स्थिति हो गई है कि डॉक्टरों को भी शारीरिक और मानसिक खतरा उत्पन्न हो गया है क्योंकि इतना बोझ सहना तो डॉक्टरों के लिए भी मुश्किल है। 2 डॉक्टरों में कौन रात में ड्यूटी देगा और कौन दिन में? भरमौर अस्पताल में डॉक्टरों और स्टाफ की इतनी कमी तो 20 साल पहले भी नहीं रही होगी।
भरमौर में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तो कल्पना करना भी मज़ाक है क्योंकि जहां सामान्य स्टाफ ही नहीं वहाँ विशेषज्ञ डॉक्टर कहाँ से मिलेंगे?
भरमौर के लोग आखिर कब तक सहेंगे यह अन्याय?
क्या भरमौर के लोग किसी दूसरे दर्जे के नागरिक हैं? क्या उनका जीवन और स्वास्थ्य मायने नहीं रखता? प्रशासन की बेरुखी और व्यवस्था की विफलता का खामियाज़ा भरमौर के हर उस व्यक्ति को भुगतना पड़ रहा है जिसे इलाज की जरूरत है।
भरमौर निवासी कहते हैं, “हमने कई बार अधिकारियों से गुहार लगाई कि अस्पताल शुरू हो, सुविधाएं बढ़ें। लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं होती। क्या हमने कोई अपराध किया है जो हमें यह सज़ा दी जा रही है?”
एक और समाजसेवी कहते हैं, “भरमौर निवासी मरीजों को घंटों गड्ढों वाली सड़क पर लादकर चंबा ले जाते हैं। कई बार समय पर इलाज न मिलने से जान भी चली जाती है। लेकिन सरकार को फर्क नहीं पड़ता।”
अब जवाबदेही कौन तय करेगा?
भरमौर के लोग पूछ रहे हैं –
- कौन है इस लापरवाही का जिम्मेदार?
- क्यों नहीं हो रही इस निर्माण में हुई खामियों की जांच?
- क्या प्रशासन जवाब देगा कि आखिर यह अस्पताल मरीजों के लायक कब बनेगा?
- भरमौर के पुराने अस्पताल में डॉक्टरों और अन्य स्टाफ की कमी कौन पूरा करेगा?
जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, भरमौर के लोगों की पीड़ा और संघर्ष जारी रहेगा।