शिमला। हिमाचल प्रदेश में राजस्व बढ़ाने की कोशिशों के बीच शराब के ठेकों की ऊंची बोली (नीलामी) सरकार के गले की फांस बन गई है। वित्त वर्ष 2025-26 में 2850 करोड़ रुपये के लक्ष्य के साथ शुरू की गई ठेकों की नीलामी प्रक्रिया बुरी तरह असफल रही है। प्रदेश के कुल 2100 शराब ठेकों में से करीब 240 ठेके अभी भी नीलाम नहीं हो पाए हैं, जिससे सरकार को बड़ा झटका लगा है।
अब सरकारी एजेंसियां चलाएंगी शराब के ठेके
सरकार ने अब फैसला किया है कि बचे हुए ठेके सरकारी एजेंसियों के माध्यम से चलाए जाएंगे। इसके तहत हिमाचल प्रदेश की विभिन्न सरकारी इकाइयां जैसे हिमफैड (HIMFED), एचपीएमसी, एग्रो इंडस्ट्री कॉरपोरेशन, सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन, वन निगम और नगर निगम इन ठेकों का संचालन करेंगी।
उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि इस विषय में निर्णय हो चुका है और एक-दो दिनों के भीतर इन सरकारी ठेकों में शराब की बिक्री शुरू हो जाएगी।
नीलामी की असफलता के कारण
- नीलामी दरें बहुत अधिक रखी गई थीं, जिससे कई ठेकेदार पीछे हट गए
- निवेशकों को लाभ की संभावना कम दिखी
- पिछली बार की तुलना में राजस्व लक्ष्य अत्यधिक रखा गया
- कुछ जिलों में 400 ठेके तक बिना बोली के रह गए
नीलामी से राजस्व नहीं, उल्टा बोझ
18 मार्च से शुरू हुई नीलामी प्रक्रिया के तहत केवल 1700 के करीब ठेके ही सफलतापूर्वक नीलाम हो पाए। सरकार ने शराब से 2850 करोड़ का राजस्व जुटाने का जो लक्ष्य रखा है, वह इस स्थिति में अधूरा दिख रहा है।
अब सरकार को ठेके खुद चलाने होंगे, जिससे प्रशासनिक लागत बढ़ेगी और प्रबंधन भी चुनौतीपूर्ण रहेगा। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की परीक्षा भी होगी।
सवाल बना रहेगा: क्या सरकार को खुद शराब बेचनी चाहिए?
हालांकि राजस्व का संकट है, पर सरकार द्वारा सीधे शराब बेचने को लेकर आलोचनाएं भी शुरू हो गई हैं। कुछ सामाजिक संगठनों ने सवाल उठाया है कि क्या सरकार का यह कदम नैतिक और सामाजिक दृष्टि से उचित है? वहीं सरकार का तर्क है कि जब ठेके नीलाम नहीं हुए, तो राजस्व घाटा रोकने के लिए यह एक अस्थायी समाधान है।