चंबा, 22 मार्च 2025: हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में आबकारी एवं कराधान विभाग द्वारा आयोजित शराब ठेका नीलामी में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं और पारदर्शिता की कमी के आरोप लगे हैं। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि विभाग ने पहले 16 यूनिटों के लिए निविदाएं आमंत्रित की थीं, लेकिन बाद में पूरे जिले की नीलामी को एकीकृत कर एक ही ठेकेदार के पक्ष में कर दिया।
इस मामले को लेकर कई ठेकेदारों ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, आबकारी मंत्री और अन्य उच्च अधिकारियों को शिकायत पत्र भेजा है और नीलामी प्रक्रिया की जांच एवं पुनर्विचार की मांग की है।
कैसे हुई चंबा में शराब ठेकों की नीलामी?
चंबा जिले में वर्ष 2025-26 के लिए कुल 16 यूनिटों में शराब ठेकों का बंटवारा किया गया था। हर यूनिट का आरक्षित मूल्य (Reserved Price) अलग-अलग निर्धारित किया गया था और उसी के आधार पर ठेकेदारों को टेंडर फीस जमा करनी थी।
नीलामी प्रक्रिया:
- व्यक्तिगत टेंडर आमंत्रित किए गए – इच्छुक ठेकेदारों को व्यक्तिगत रूप से 16 यूनिटों के लिए बोली लगाने का मौका दिया गया।
- 9 यूनिटों की सफल नीलामी हुई – इन यूनिटों के लिए उच्चतम बोली लगाने वालों को ठेका आवंटित किया गया। लगभग 57% ठेकों की नीलामी में विभाग को आरक्षित मूल्य से लगभग 8-9 करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व मिल चुका था।
- बाकी यूनिटों के लिए कोई खरीदार नहीं मिला – कई यूनिटों के लिए बोली नहीं लगी, लेकिन ठेकेदारों को उम्मीद थी कि उन्हें कुछ दिन का समय दिया जाएगा और दोबारा मौका मिलेगा, जैसे बाकी जिलों में होता है।
- आबकारी विभाग ने बिना अतिरिक्त समय दिए ठेके एकीकृत कर दिए – विभाग ने अचानक घोषणा कर दी कि बाकी बची हुई यूनिटों को एक साथ जोड़कर एक ही ठेकेदार को दिया जाएगा।
- बोलीदाताओं ने नए नियमों को खारिज किया – जब विभाग ने व्यक्तिगत ठेकों को एकीकृत करने की शर्त रखी, तो कई ठेकेदारों ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया।
- पहले से नीलाम हुई यूनिटों को भी जबरन मिला दिया गया – विवाद तब गहरा गया जब विभाग ने न केवल बची हुई यूनिटों को, बल्कि पहले ही सफलतापूर्वक नीलाम हो चुकी 9 यूनिटों को भी एक ही समूह में शामिल कर दिया।
- एक ही ठेकेदार को ठेका सौंपा गया – अंततः विभाग ने पूरे जिले की शराब बिक्री का एकीकृत ठेका एक ही ठेकेदार को दे दिया।
सबसे बड़े सवाल:
1. यदि नीलामी पूरे जिले के लिए ही करनी थी, तो अलग-अलग यूनिटों के लिए टेंडर क्यों मांगे गए?
शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि यदि आबकारी विभाग का इरादा पूरे जिले को एक ही ठेकेदार को देने का था, तो 16 यूनिट बनाकर इंडिविजुअल टेंडर मंगाने की कोई जरूरत नहीं थी।
- व्यक्तिगत यूनिट का टेंडर देने वाले ठेकेदारों ने टेंडर फीस उन यूनिटों के हिसाब से जमा कराई थी, जिसमें टेंडर फीस 50,000 से लेकर 2,00,000 रुपये थी।
- यदि विभाग शुरू से ही एक ही ठेकेदार को नीलामी देना चाहता था, तो उन ठेकेदारों का समय और पैसा क्यों बर्बाद किया गया?
- हो सकता है 5 करोड़ की बोली लगाने वाला ठेकेदार एकीकृत ठेके की 100 करोड़ की बोली के लिए टेंडर फीस नहीं जमा करता?
- इन ठेकेदारों की टेंडर फीस ही नहीं बल्कि अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के लिए भी खर्च आया, जो वे नहीं करते अगर उन्हें एकीकृत बोली की जानकारी पहले से होती।
- कई ठेकेदारों ने यह सोचकर टेंडर डाले थे कि उन्हें छोटे-छोटे यूनिट मिलेंगे, लेकिन जबरदस्ती पूरे जिले को एक ही ठेके में बदल दिया गया।
- अगर 10 करोड़ की यूनिट के लिए टेंडर फीस 2,00,000 रुपए थी, तो एकीकृत 104 करोड़ रुपए के ठेके के लिए टेंडर फीस कितनी थी?
2. क्या यह सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने वाली नीति थी?
- 9 यूनिट की नीलामी पहले ही हो चुकी थी, जिससे लगभग 67% ठेकों की नीलामी में विभाग को आरक्षित मूल्य से लगभग 8-9 करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व मिल चुका था। जबकि एकीकृत शराब के ठेके 104 करोड़ 52 लाख रुपये में नीलाम हुए जो बीते वर्ष की तुलना में सिर्फ 1 करोड़ 52 लाख रुपये ज्यादा है।
- अगर बचे हुए ठेकों की नीलामी के लिए कुछ दिन का वक्त देकर दोबारा बोली लगवाई जाती, तो व्यक्तिगत बोलीदाताओं के बीच प्रतिस्पर्धा होने से सरकार को और अधिक राजस्व प्राप्त हो सकता था।
- लेकिन जब पूरे जिले की नीलामी को एक ही ठेकेदार को सौंप दिया गया, तो प्रतियोगिता खत्म हो गई और सरकार को संभावित नुकसान हुआ।
शिकायतकर्ताओं की मांग: नीलामी की जांच और पुनः आयोजन
मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में ठेकेदारों ने निम्नलिखित मांगें की हैं:
- अभी तक बेचे न गए ठेकों की दोबारा नीलामी हो।
- जो ठेके पहले ही सफलतापूर्वक नीलाम हो चुके थे, उन्हें एकीकृत नए ठेके में शामिल करने को अमान्य घोषित किया जाए।
- नूरपुर और कांगड़ा में जहां 30% ठेकों की ही नीलामी हुई, इसके बावजूद वहां पूरे जिले की एकीकृत ठेका नीलामी नहीं हुई, तो चंबा में ऐसा क्यों किया गया?
- पूरी नीलामी प्रक्रिया की न्यायिक जांच हो, ताकि पारदर्शिता बनी रहे। घोषित नियमों में कहा गया था कि केवल वही लोग बोली लगा सकते हैं, जिनका नाम टेंडर दस्तावेज में था। लेकिन अंतिम नीलामी में एक ही व्यक्ति ने एकीकृत ठेके के लिए बोली लगाई। वीडियो रिकॉर्डिंग एक्साइज विभाग के पास मौजूद है
- यदि विभाग को पूरे जिले के लिए एक ही बोलीदाता चाहिए था, तो पहले ही इसकी घोषणा करनी चाहिए थी।
- ठेकेदारों ने व्यक्तिगत यूनिटों के हिसाब से तैयारी की थी, तो क्षणभर में उनसे एकीकृत ठेके के लिए निविदा कैसे मांगी जा सकती थी?
- जब टेंडर फीस व्यक्तिगत यूनिटों की नीलामी के लिए थी, तो एकीकृत ठेके के लिए टेंडर फीस कैसे रखी जा सकती है, जब एकीकृत ठेके की नीलामी में वे शामिल ही नहीं हुए? क्या व्यक्तिगत यूनिटों की टेंडर फीस एकीकृत ठेके के लिए रखना गैर-कानूनी नहीं?
क्या कह रहे हैं आबकारी विभाग के अधिकारी?
इस विवाद पर आबकारी विभाग के अधिकारियों ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी अमित मैहरा ने बताया कि शराब के ठेकों की नीलामी प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ निपटाई गई है। उन्होंने बताया कि पूरे यूनिट न बिकने के चलते ठेकेदारों को पूरे जिला की बोली लगाने का आफर दिया गया था।
अब आगे क्या होगा?
- यदि मुख्यमंत्री इस शिकायत को गंभीरता से लेते हैं, तो संभव है कि आबकारी विभाग की पूरी प्रक्रिया की समीक्षा की जाए।
- यदि सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, तो ठेकेदार अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
- यदि इस नीलामी प्रक्रिया में अनियमितताएं साबित होती हैं, तो दोबारा नीलामी के आदेश दिए जा सकते हैं।
क्या यह फैसला उचित था?
यह विवाद कई बड़े सवाल खड़े करता है:
- क्या आबकारी विभाग ने नियमों के तहत काम किया?
- क्या ठेकेदारों के साथ अन्याय हुआ, जिन्होंने व्यक्तिगत यूनिटों के टेंडर भरने के लिए फीस दी थी?
- क्या ठेकेदारों की व्यक्तिगत यूनिटों के टेंडर भरने की फीस एकीकृत ठेके के लिए जब्त करना सही था?
- क्या इस फैसले से सरकार को संभावित राजस्व का नुकसान हुआ?
अब यह देखना होगा कि सरकार और न्यायपालिका इस मामले पर क्या निर्णय लेते हैं।
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