मलयालम संगीत के महान गायक और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पी. जयचंद्रन (P Jayachandran) का गुरुवार को निधन हो गया। 80 वर्षीय जयचंद्रन ने त्रिशूर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां वह कैंसर का इलाज करा रहे थे।
जयचंद्रन ने अपने संगीत करियर में 16,000 से अधिक गीत गाए और मलयालम सिनेमा के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी।
प्रारंभिक जीवन और संगीत का सफर
जयचंद्रन ने 1965 में फिल्म ‘कुन्हालिमारिक्कर’ (Kunhalimarikkar) के गाने “ओरु मुल्लापूमलयुमाई” (Oru Mullappoomalayumaayi) से अपने करियर की शुरुआत की थी। हालांकि, उनकी आवाज पहली बार जी. देवराजन की रचना “मंजलयिल मुँगी तोर्थी” (Manjalayil Mungi Thorthi) में सुनी गई।
उनके गीतों ने मलयालम सिनेमा में एक नई पहचान बनाई। जयचंद्रन की आवाज़ ने कई दशकों तक श्रोताओं के दिलों पर राज किया।
संगीतकारों के साथ यादगार साझेदारी
जयचंद्रन ने अपने करियर में वी. दक्षिणामूर्ति (V Dakshinamoorthy), एम.एस. बाबूराज (MS Baburaj), देवराजन (Devarajan), विद्यासागर (Vidyasagar), और ए.आर. रहमान (AR Rahman) जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया।
जयचंद्रन ने रहमान के साथ अपने पहले तमिल गीत “कथ्ताझा कातु वझी” (Kaththaazha Kaatu Vazhi) के लिए तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार जीता। रहमान ने ही उन्हें हिंदी में भी गाने का मौका दिया।
उनकी आवाज़ ने “रासथी उन्ना” (Raasathi Unna), “पूवा एदुथु ओरु” (Poova Eduthu Oru), और “थालाट्टुधे वानम” (Thaalaattudhey Vaanam) जैसे तमिल गीतों को अमर बना दिया।
भक्ति संगीत में योगदान
जयचंद्रन न केवल फिल्मों में बल्कि भक्ति संगीत में भी सक्रिय थे। उन्होंने मलयालम और तमिल दोनों भाषाओं में कई भक्ति एल्बम रिकॉर्ड किए, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
दिग्गज की विरासत
पी. जयचंद्रन का निधन भारतीय संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी आवाज़ ने न केवल मलयालम सिनेमा को, बल्कि दक्षिण भारतीय संगीत की सभी भाषाओं को समृद्ध किया। उनके गीत पीढ़ियों तक श्रोताओं को प्रेरित करते रहेंगे।