रोहड़ू में भूंडा महायज्ञ: देव आस्था का अद्भुत संगम, 70 वर्षीय सूरत राम ने निभाई बेड़े की रस्म

रोहड़ू में भूंडा महायज्ञ: देव आस्था का अद्भुत संगम, 70 वर्षीय सूरत राम ने निभाई बेड़े की रस्म

रोहड़ू (शिमला): शिमला जिले के स्पैल वैली के दलगांव में आयोजित भूंडा महायज्ञ में शनिवार को ऐतिहासिक बेड़े की रस्म अदायगी हुई। इस महायज्ञ का केंद्र बिंदु देवता बकरालू जी महाराज का मंदिर बना रहा, जहां 70 वर्षीय सूरत राम ने नौवीं बार रस्सी के सहारे मौत की घाटी को पार किया। रस्म को पूरा करने के दौरान रस्सी टूटने जैसी चुनौती सामने आई, लेकिन बाद में इसे सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

रस्सी टूटने से हुआ व्यवधान, फिर भी पूरी हुई रस्म

बेड़े की रस्म के दौरान पहले रस्सी बांधने में समस्या आई। रस्सी एक कोने से टूट गई, जिसके चलते रस्म को पूरा करने में कुछ समय का व्यवधान हुआ। मंदिर कमेटी ने इसके बाद रस्सी की दूरी को 200 मीटर तक कम कर दिया और रस्म को पूरा किया गया। इस रस्म के दौरान सूरत राम सफेद पोशाक में देवता के रथ के साथ पहुंचे और जैसे ही वह रस्सी पर आगे बढ़े, बेड़ा बीच में फंस गया। करीब 4-5 मिनट तक चले इस घटनाक्रम के बाद रस्सी को खींचकर रस्म को संपन्न किया गया।

1.50 लाख भक्तों ने देखा भव्य आयोजन

भूंडा महायज्ञ में लगभग 1.50 लाख श्रद्धालु शामिल हुए। ढोल-नगाड़ों की गूंज, देव जयकारों और पारंपरिक नाटियों ने पूरे आयोजन को भव्यता प्रदान की। देवता के रथ और सूरत राम की साहसिक रस्म ने भक्तों को रोमांचित कर दिया।

सूरत राम की अद्वितीय भूमिका

सूरत राम ने 1985 में 25 वर्ष की आयु में पहली बार बेड़े की रस्म निभाई थी। इस बार यह उनका नौवां अवसर था। उन्होंने बताया कि इस रस्म को निभाने में अद्भुत साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है। वह अब तक हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर 9 बार इस रस्म को निभा चुके हैं।

300 लोगों ने उठाकर पहुंचाई दिव्य रस्सी

इस रस्म के लिए दिव्य रस्सी को विशेष महत्व दिया जाता है। इसे रात भर पानी में भिगोकर रखा जाता है। सुबह 300 लोगों ने इस रस्सी को कंधों पर उठाकर आयोजन स्थल तक पहुंचाया और रस्सी को नाले के दोनों किनारों पर बांधा। मूंजी नामक घास से बनी यह रस्सी बेहद मजबूत होती है और इसे माता सीता के केश से जोड़ा जाता है। रस्सी को तैयार करने में 3 महीने का समय लगता है।

मेहमान देवताओं की उपस्थिति

इस आयोजन में कई स्थानीय व मेहमान देवता शामिल हुए। देवता बौंद्रा, देवता मोहरिश और देवता महेश्वर के अलावा 3 स्थानीय परशुराम देवता भी महायज्ञ में उपस्थित रहे। आयोजन के दौरान 9 गांवों के लोग सक्रिय रूप से शामिल हुए, जिनमें दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनोली के ग्रामीण मुख्य रूप से उपस्थित थे।

भूंडा महायज्ञ: आस्था और परंपरा का संगम

भूंडा महायज्ञ हिमाचल प्रदेश की एक प्राचीन और विशेष परंपरा है, जिसमें देव आस्था और परंपरागत रीति-रिवाजों का अनूठा संगम देखने को मिलता है। मूंजी से बनी दिव्य रस्सी और साहसिक बेड़े की रस्म इस आयोजन को विशेष बनाती है।