भरमौर क्षेत्र में अगर प्राकृतिक सौंदर्य है तो वह होली घाटी में है.शानदार जंगल,हरी भरी घाटियां,प्राचीन शिवालयों में गद्दियों के शिवघोष से रूह तक में उतर जाने वाली भगवान शंकर की अनुभूति पर्रयटकों को यहीं का बना लेने का माद्दा रखती है.इन्हीं में से अंदरला ग्रां में स्थित गर्म पानी के चश्में भी एक हैं.जहां स्थानीय लोग धार्मिक आस्था स्वरूप स्नान करते हैं तो कई लोग इन गर्म पानी के चश्मों में स्नान को बीमारियों का उपचार मानते हैं.वहीं पर्यटकों के लिए यह एक दर्शनीय स्थल था.लेकिन सरकार द्वारा अपनी आय बढ़ाने के लिए विद्युत परियोजनाओं का धड़ा धड़ निर्माण व स्थानीय लोगों द्वारा अपने छोटे से रोजगार के बड़े स्वार्थ ने इव गर्म पानी के चश्मों की बलि दे दी है.अंदरला ग्रां के तत्वाणी के इन गर्म पानी के चश्मों में पानी का तापमान करीब सत्तर डिग्री सें ग्रेड तक है.लेकिन बजोली होली विद्युत परियोजना निर्माण के एचआरटी (टनल) में रिस रहा है.गरम पानी रिसन के कारण टनल के भीतर तापमान पचास डिग्री सेंटी ग्रेड तक पहुंच गया है जहां परियोजना निर्माण में जुटे कर्मचारी कपड़े उतार कर कार्य करते हैं.तो कर्मचारी सुरंग से फूटते गरम पानी के फव्वारों से नहाने का आनन्द भी लेते हैं.सरकार अगर इस गर्म पानी के चश्मे को पर्यटन के नजरिए से तराशती तो शायद हिमाचल में सबसे अधिक पर्यटक यहीं पहुंचते.लेकिन न सरकार व न ही स्थानीय लोगों ने इतनी दूरदर्शिता दिखाई जो इन चश्मों को सूखने के नुक्सान से बचाने के प्रयास किए जाते.चूंकि अब जबकि चश्में का सत्तर प्रतिशत पानी सुरंग में रिस रहा है तो ग्रामीणों को तत्वाणी के चश्मों को बचाने की याद आई है.लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि परियोजना के एडिट पांच की सुरंग के मुख्य द्र
से गर्म पानी को बाहर निकाल कर एक झील बनाकर एकत्रित किया जाए.ताकि यहां पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके.
भले ही इस बहुमूल्य गर्म पानी का बड़ा हिस्सा सुरंग मैं रिस रहा हो लेकिन सरकार कम्पनी पर दबाब बनाए तो इसे किसने से रोकने के उपाय किए जा सकते हैं.ताकि उपर भूमि की सतह पर इसका सदुपयोग किया जा सके.क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि स्थानीय लोगों को अपने निजि हितों को साधने से पूर्व यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने पर्यावरण का नुक्सान कर के अपनी भावी पीढ़ियों का जीवन खतरे में डाल रहे हैं.