भरमौर के गद्दी समुदाय का इतिहास: ऐतिहासिक गौरव और मिथकों का सच

history of gaddis

भरमौर का गद्दी समुदाय, जो अपनी प्राचीन संस्कृति और विशिष्ट पहचान के लिए जाना जाता है, अक्सर ऐतिहासिक मिथकों और भ्रांतियों का शिकार होता रहा है। यह धारणा कि गद्दी लोग औरंगजेब के शासन के डर से या अन्य क्षेत्रों से आए थे, न केवल निराधार है बल्कि उनकी गहरी स्थानीय जड़ों को नकारती है। वास्तव में, गद्दी समुदाय की उत्पत्ति और विकास भरमौर की धरती से जुड़े हुए हैं।

भरमौर, जो कि प्राचीनकाल में ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था, अपने गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र की साम्राज्यिक इतिहास की शुरुआत राजा मारू द्वारा 550 ईस्वी में की गई थी। राजा मारू ने स्थानीय क्षत्रिय कबीलों की सहायता से एक स्वतंत्र रियासत की स्थापना की, और शिव की गद्दी को अपने राज्य का प्रतीक चिन्ह बनाया।

गद्दीदार के नाम से जाने जाने वाले 5-6 क्षत्रिय कबीलों की संतति ने गद्दी के नाम से एक अलग पहचान बनाई, जो आज भी भरमौर में क्षत्रिय वर्ण में, ब्राह्मण और अन्य कोलार्यन जातियों में प्रचलित है। गद्दी शब्द का अर्थ आसन, सिंहासन और राजसिंहासन से है, जो कि इस समुदाय की शक्ति और प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

“इतिहास के पन्नों से उठते धूल के बीच, गद्दी समुदाय के इतिहास को धूमिल करने वाली गलत सूचनाएं एक चिंता का विषय बनी हुई हैं। ऐतिहासिक दस्तावेज़ और पुरातात्विक साक्ष्य यह साबित करते हैं कि गद्दी समुदाय का साम्राज्य ईसवी पूर्व में भी मौजूद था।”

डॉ भरत सिंह

गद्दी समुदाय की विरासत और योगदान को कमतर आंकने वाली गलत सूचनाएं न केवल उनके इतिहास को धुंधला करती हैं, बल्कि उनके प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करती हैं। इतिहास को दबाने की कोशिश की जा सकती है, लेकिन उसे छुपाया नहीं जा सकता। गद्दी समुदाय का इतिहास और उनकी विरासत उनकी सशक्त पहचान के रूप में हमेशा विद्यमान रहेगी।