लोगों के दिल को छू गया हरणोटा,हरणातर यात्रा देखने के लिए लोग कामकाज छोड़ आए

रोजाना24, चम्बा 17 मार्च : शताब्दी पूर्व जिन परम्पराओं को घर-घर जीया जाता था आज उनमें से कुछ विलुप्त हो रही हैं । अपनी मूल पहचान को बचाए रखने के लिए क्षेत्र के कुछ लोग आज भी इन्हें जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं बिसारी जा रही इन परम्पराओं  में हरणातर यात्रा भी एक है। चम्बा जिला के जनजातीय क्षेत्र भरमौर में कुछ प्राचीन गद्दी समुदाय में एक ही त्योहार को अलग अलग तरीके से मनाए जाने की परम्पराएं हैं.एक ओर जहां होली के त्योहार पर भरमौर मुख्यालय के आसपास के लोगों द्वारा बृज की होली की तर्ज पर रंगों की होली खेली जा रही है तो वहीं दूसरी ओर इसी उपमंडल के दूसरे भाग में होली के अवसर पर ‘हरणातर‘ यात्रा निकाल कर इसे मनाया जा रहा है। ग्राम पंचायत गरोला के हरणातर युवा मंडल बासंदा शिव मंदिर बासंदा से हरणातर यात्रा निकालकर उपमंडल मुख्यालय भरमौर के कई गांवों में जाकर ‘हरनोटा‘ गाया.

हरणा रै सिंग सहौणै,जिइयां मोती रै दाणै.

बाहर निकला ओ घर मोहियो,असु गाहणा दुरेडै.

तुसू लोका जो लगदिया खेला,असां होईयां बेला.”

इन बोलों के साथ हरनोटे की टोली में शामिल किरदार जिनमें देवी देवताओं के वेश में  व पांच चंदरोली, व मुखौटे पहने ‘बुढ्ढा, बुढ्ढी व रौलू’ का किरदार निभाने वाले स्थानीय लोगों ने घर घर जाकर लोगों को होली पर्व की शुभकामनाएं दी व उनसे हरनोटा एकत्रित किया।आज शाम हरणातर यात्रा बासंदा से भरमौर व खणी पहुंची कल सुबह यह होली तहसील के विभिन्न गांवों की यात्रा करते हुए वापिस बासंदा गांव पहुंचेगी। जहां होलिका दहन के साथ इसका समापन होगा।

हरणोटा यात्रा का स्थानीय लोगों ने खूब स्वागत किया ।

हरनोटा समिति संयोजक सतपाल भारद्वाज बताते हैं कि हरणातर गद्दी समुदाय की प्राचीन परम्पराओं में से एक है लेकिन आज यह मात्र कुछ एक गांवों तक सीमित होकर रह गया है।आलम यह है कि साठ की आयु पार कर चुके गद्दी समुदाय का बहुत बड़ा वर्ग हरणातर के बारे में अनभिज्ञ है.उन्होंने कहा कि विकास व आधुनिकता अपनी जगह रही हो सकते हैं लेकिन कुछ परंपराएं हमारी पहचान हैं जिन्हें बचाया रखना हमारी जिम्मेदारी है।