रोजाना24,ऊना 24 जनवरी : हिमाचल प्रदेश के बर्फीले ठंडे रेगिस्तान में समुद्रतल से लगभग ग्यारह हज़ार फीट की ऊंचाई पर हींग की खेती के लिए राज्य में पायलट परियोजना सफलतापूर्वक शुरू कर दी गई है, जिससे जनजातीय क्षेत्रों में नई आर्थिक एवं सामाजिक क्रांति का सूत्रपात होगा।राज्य के कृषि मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने आज यहां बताया कि जनजातीय लाहौल-स्पिति जिला के कवारिंग गांव में 15 अक्टूबर 2020 को हींग फसल के बीजारोपण कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की गई तथा हींग फसल का प्रारंभिक व्यवसायिक उत्पादन अगले 4-5 साल में राज्य के कवारिंग, मड़ग्राम, मोबीसेरी, कल्पा तथा पूह के ऊंचे हिमालियन क्षेत्रों में पांच हज़ार वर्ग मीटर में पायलट आधार पर हींग का पौधारोपण किया गया है। इससे राज्य में परम्परागत कृषि पद्धति में एक ऐतिहासिक परिवर्तन की शुरूआत हुई है। राज्य के लाहौल स्पिति, किन्नौर तथा मंडी जिलों के ऊंचे हिमालयी बर्फीले क्षेत्रों में आगामी पांच सालों में 302 हैक्टेयर क्षेत्र में हींग की खेती कर के देश को हींग उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जाएंगे।इस समय पायलट परियोजना के अंतर्गत कवर किए क्षेत्रों से सटे नए क्षेत्रों में हींग की खेती की संभावनाएं तलाशने का कार्य किया जाएगा, ताकि भौगोलिक, वातावरण तथा तापमान की दृष्टि से समान क्षेत्रों में हींग की खेती करने के लिए उपयुक्त स्थान चिन्हित किए जा सकें। पालमपुर सी.एस.आई.आर तथा कृषि विभाग के वैज्ञानिक इस पायलट परियोजना का बारीकी के साथ वैज्ञानिक आकलन कर रहे हैं। इस परियोजना के सफलतापूर्वक कार्यान्वन के लिए सी.एस.आई.आर पालमपुर के वैज्ञानिक किसानों को तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण, अन्य मार्गदर्शन एवं सलाह उपलब्ध करवाएंगे।कृषि मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने कहा कि हींग की खेती के सफलतापूर्वक व्यवसायिक उत्पादन से हिमालयी क्षेत्रों में एक नई आर्थिक क्रान्ति का सूत्रपात होगा। हिमाचल प्रदेश में हींग की खेती के लिए न्यूनतम 5 से 10 डिग्री तापमान तथा ऊंचे बर्फीले हिमालयी क्षेत्र अनुकुल माने जाते हैं, जहां वार्षिक औसतन वर्षा 100-350 मिलीमीटर दर्ज की जाती है।उन्होंने कहा कि हींग की खेती से जुड़े किसानों को बीज, पौधे, प्रशिक्षण तथा ढांचागत सुविधाएं राज्य के कृषि विभाग के माध्यम से मुफ्त प्रदान की जाएगी, ताकि किसानों को हींग की खेती के लिए प्रेरित किया जा सके। हींग का उपयोग देश की प्रत्येक घर में खाने का स्वाद बढ़ाने होता है तथा परम्परागत रूप से हींग को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन अभी तक इसका आयात अफगानिस्तान तथा ईरान से किया जाता रहा है तथा इसके व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन के प्रयास पहली बार किए जा रहे हैं।