रामलीला…. डॉ एम डी सिंह

                                                  कविता 

आज मुझे दिखा नहीं कहीं रावण जलतान दिखे राम ना लक्ष्मण सीता

मैं स्तब्ध बावला दिन भर सुबह से शाम तक पर्वत- पठार खुले आकाश घने वन में रहा भटकता जैसे भटके थे राम लक्ष्मणपूछते खोई सीता का पता चर- अचर सबसे

मिले सब मिले मुझे भीखड़ाऊं ले अयोध्या वापस लौटते भरतपांव पखार कठौती में जल ले मंत्रमुग्ध मल्लाहलक्ष्मण से नाक कटारो-रोकर बेहाल सुपर्णनखा पूछती अपना अपराध

स्वर्ण मृग बन घास चर रहा मारीचिखट्टा मीठा बेर बीन चख रही शबरीअपहृत नारी को हवाई पथ से ले जा रहेरावण से लड़ पंख कटा भूमि पर गिरा गिद्ध जटायुखोजने लड़ने लाने को तैयारहनुमान सुग्रीव जामवन्त

पंचवटी के अशोक वृक्षराम- राम रट रहे लंका के विभीषणपुल से बंधा हुआ हतप्रभ समुद्रराम की शक्ति पूजा में चढ़े नीलकमलधू धू कर जल रही सोने की लंका

पुरुषोत्तम राम मां सीता कोकलंकित करता अयोध्या नगरी का धोबीअश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा पकड़े लव-कुशरामायण रच रहे बाल्मीकित्रेता युग के सब के सब मिले

इस कलयुग के आपाधापी छल- कपट कोलाहल शोर भरे जीवनयुद्ध में भी चुप नितांतकपड़े से मुंह बांधे अथवा मास्क लगाएसब के सब मिलेआज मुझे