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चलिए रंणगीत गाएं – डॉ एम डी सिंह

हम अपने हौसलों की दुंदुभी फिर से बजाएं 

चलिए रंणगीत गाएं चलिए रंणगीत गाएं

 

वीरों की इस धरती शहीदों की परंपरा से

दधीचि की इन हड्डियों परसुराम की त्वरा से

शौर्य की लिखनी फिर से अब हमें नई कथाएं

चलिए रंणगीत गाएंं चलिए रंणगीत गाएं

दुष्ट संहारणी दुर्गा की शक्ति के स्वरूप हम

राम हम कृष्ण हम हैं विष्णु के अनगिन रूप हम

नरसिंह का अवतार फिर बनकर जग को दिखाएं

चलिए रंणगीत गाएं चलिए रंणगीत गाएं 

मृत्यु भी है शाश्वत तो अमरत्व भी है शाश्वत

युद्ध धर्मग्रंथों में हमारे है जिंदा शाश्वत

तब गहन रंणघोष से कहें भला क्यों घबराएं

चलिए रंणगीत गाएं चलिए रंणगीत गाएं 

कारगिल के रंणबाकुरों का बलिदान न व्यर्थ हो

पराक्रम उनका बच रहे बाजू में सामर्थ हो

हवा अपनी छातियों में भर पर्वत को हिलाएं

चलिए रंणगीत गाएं चलिए रंणगीत गाएं 

हाथ में त्रिशूल ले फिर आज बम-बम बोल कर

भस्म करने के लिए हम फिर त्रिनेत्र खोलकर

रौद्र रूप नटराज का नृत्य फिर कर दिखाएं

चलिए रंणगीत गाएं चलिए रंणगीत गाएं 

– डॉ एम डी सिंह  पीरनगर ,गाजीपुर यू पी में  पिछले पचास सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी  की चिकित्सा कर रहे हैं .

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