हिमाचल प्रदेश में क्रिप्टो करेंसी में हुए फ्रॉड का मामला लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. इसको लेकर बनी SIT लगातार जांच में जुटी हुई है. इस पुरे प्रकरण को लेकर हिमाचल प्रदेश के पुलिस महानिदेशक आईपीएस संजय कुंडू का बयान सामने आया है. उन्होंने बताया कि एसआईटी लगातार मामले में जांच कर रही है साथ ही लगातार छापेमारी और गिरफ्तारियां भी कर रही है. उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को छोड़ा नहीं जाएगा.
हिमाचल पुलिस के महानिदेशक संजय कुंडू ने बताया कि क्रिप्टो करेंसी फ्रॉड को लेकर डीआईजी नॉर्दर्न रेंज अभिषेक दुल्लर की अध्यक्षता में SIT का गठन किया गया है. इस SIT में सीबीआई का तजुर्बा रखने वाले अधिकारियों को शामिल किया गया. जो लगातार जांच कर रहे हैं. डीजीपी कुंडू ने बताया कि करीब 2500 करोड़ के आसपास इस पूरे प्रकरण में ट्रांजेक्शन हुए हैं और मास्टरमाइंड ने इसके जरिए 500 करोड़ रुपए का फ्रॉड किया. तकरीबन एक लाख आईडी से इन्वेस्टमेंट हुआ, जिसमें 70 से 80 लोगों ने दो करोड़ से ज्यादा की कमाई की है. ‘मुख्य आरोपी भागा दुबई’ डीजीपी कुंडू ने बताया कि मामले में अभी तक 18 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं, जिसमें चार में से तीन मुख्य आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं. वहीं, एक मुख्य आरोपी सुभाष शर्मा पुलिस की गिरफ्त से बाहर है और दुबई भाग गया है. बीते दिनों आठ लोगों की गिरफ्तारी है.
कुंडू ने बताया कि इस मामले में सात लोगों ने हाई कोर्ट में बेल एप्लीकेशन भी दिया है. मामले में अब तक 12 करोड़ की प्रॉपर्टी फ्रीज और जप्त की गई है, जिसमें मुख्य आरोपी की मंडी और जीरकपुर में तीन करोड़ की प्रॉपर्टी शामिल है. पहले इंवेस्ट किया फिर एजेंट बन गए पुलिसकर्मी: डीजीपी
उन्होंने आगे कहा कि फ्रॉड मामले में सरकारी कर्मचारी और खासतौर पर पुलिसकर्मियों भी संलिप्तता देखने को मिली है. स्कैमर्स ने सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को भी अपना निशाना बनाया.
DGP ने कहा कि इसमें पुलिस के जवान भी शामिल हैं. पहले तो यह पुलिस कर्मी क्रिप्टो करेंसी में इन्वेस्टर बने और बाद में एजेंट बन गए. पुलिस विभाग की ओर से इस मामले में अब तक चार पुलिस के जवानों को भी गिरफ्तार किया गया है और उनकी क्रिप्टो से कमाई 2 करोड़ से ज्यादा है.
साल 2018 में शुरू हुआ था ये घोटाला
इसके पहले हिमाचल पुलिस ने बताया था कि यह घोटाला 2018 में शुरू हुआ था. इसमें अधिकांश पीड़ित मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा जिलों के थे. कुछ मामलों में एक अकेले व्यक्ति ने 1,000 लोगों को इस योजना में शामिल किया था. पुलिस ने पहले कहा था कि आरोपियों ने अपनी योजना पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए गलत सूचना, धोखे और धमकियों का इस्तेमाल किया और क्रिप्टोकरेंसी की कीमतों में हेरफेर करके निवेशकों से पैसा निकालते रहे. जिसकी वजह से पीड़ितों को भारी नुकसान हुआ।